Mihir Sen and Kangna

आज कहानी मिहिर सेन की, भारत का पहला तैराक जिसने इंग्लिश चैनल पार किया था. और फिर इंग्लिश चैनल ही क्यूं, पलका स्ट्रेट, पनामा कैनाल और हर वो जलकुम्भ जिसे पार करना किसी स्थापित तैराक का सपना होता है, मिहिर सेन ने उसे पानी भुजाओं से नापा. भारत में इतने मौसमी सोते और सालोंभर बहने वाली नदियां हैं कि किसी माइकल फ्लेप्स को स्विमिंग पूल की जरुरत ना पड़े, पर मिहिर सेन की कहानी उन युवाओं के प्रश्नों का जवाब है जिनका सपना सरकारी नौकरी पाना नहीं होता. कई बार खिलाड़ी इसलिए भी खेलता है कि उसे खेल कोटे से सरकारी नौकरी मिल जाये. पर मिहिर सेन....

तैराकी से सन्यास लेने पर मिहिर सेन ने अपनी सिल्क फैक्ट्री बिठायी. कलकत्ता को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले मिहिर सेन के बिजनेस में एक ऐसा वक्त भी आया जब वो भारत के दूसरे नंबर के सिल्क निर्यातक बन गये.

फिर आया 1977 और चुनाव, जिसमें ज्योति बसु ने मिहिर सेन से उनके पक्ष में चुनाव प्रचार करने को कहा. पर मिहिर सेन ने बसु को ना सिर्फ मना किया बल्कि बसु के खिलाफ चुनाव में खड़े हो गये. ज्योति बसु चुनाव तो जीत गये पर इसके साथ ही शुरू हुआ बदला लेने का एक ऐसा दौर जिसकी बानगी कंगना के साथ भी देखने को मिल रही है. 

अपने वामपंथी यूनियन के बल पर ज्योति-बसु ने मिहिर सेन की फैक्ट्री में धरना दिलवाना शुरू किया. फैक्ट्री के लिए कच्चे माल से लदे कई ट्रकों को जला दिया गया. यहां तक कि तैयार सिल्क से भरे ट्रक, जिसे निर्यात होना था, उसे लूट लिया गया. 

ज्योति बसु की बंगाल पुलिस ने मिहिर सेन पर झूठा मुकदमा ठोक कर, उनके घर पर प्रतिदिन रेड डालना शुरू किया, सम्पति और नकदी जब्त कर ली गयी. 

एक सफल उद्यमी-उद्योगी और व्यापारी मिहिर सेन को ज्योति बसु ने दिवालिया बना दिया. मिहर सेन सड़क पर आ गये.

एक विश्व प्रसिद्द स्विमर(तैराक) और पद्म-विभूषित, 50 वर्ष तक की आयु पूरी करने तक पागलपन का शिकार हो गया. 67 की उम्र में उनकी मृत्यु हुयी. 

बाद में, ज्योति-बसु भारत के किसी भी राज्य में लगातार सबसे अधिक वर्षों तक पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री बने.  बसु को भारत के एक महान नेता के तौर पर गिना जाता है पर सच्चाई इसके ठीक उलट है. वामपंथ के नाम पर उन्होंने पश्चिम बंगाल को बर्बाद ही किया. बंगाल हरेक दृष्टि से पिछड़ गया. 

अपने तीन दशक के शासनकाल में बसु ने जनता को राज्य की तरफ से स्वास्थ्य सेवा देने से इंकार कर दिया पर जब खुद जरूरत पड़ी तो इलाज कराने लन्दन चले गये. अक्सर वामपंथियों को इस बात की का मलाल होता है कि ज्योति-बसु प्रधानमंत्री नहीं बने. 

आज आदित्य ठाकरे के सत्ता नृत्य को देख कर बसु की याद गयी. कंगना को तो फिर भी बहुत समर्थन है पर कोई मिहिर सेन क्यूं नहीं बनना चाहता इसका जबाब सत्ता के ''ज्योति-बसुकरण''  में छिपा है. लालू जी यादव सत्ता के ज्योति-बसुकरण का ही उदहारण हैं. बंगाल-बिहार जैसे राज्यों में किसी युवा को होश आने पर सिर्फ सरकारी नौकरी याद आता है तो उसका कारण, सत्ता का ज्योति-बसुकरण ही है.

कंगना फिल्म इंडस्ट्री की मिहिर सेन हैं. और ठाकरे खानदान मुंबई का ज्योतिबसु. कुछ वर्षों को छोड़ दें तो पिछले पांच दशक से ठाकरे का महानगर पालिका पर कब्ज़ा है. और इसी दरम्यान मुबई ड्रग्स-आतंकवाद-बच्चा तस्करी के हब के रूप में स्थापित हुआ है.

बहुत से लोगों को भ्रम है कि बाल ठाकरे अच्छे थे, जबकि असलियत इसके उलट है जिसके विस्तार में अभी नहीं जाऊंगा. लेकिन ये समझिये कि शरद पवार और बाल ठाकरे के बीच यदि पारिवारिक संबंध अच्छे थे तो इसका कारण वही असलियत था.  

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