मेडिकल एग्जाम और कोरोना
प्रधानमंत्री का अपना बच्चा है नहीं इसलिए दूसरों के बच्चों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं....!!!!
पर यदि अपने बच्चों के आधार पर ही फ़ैसला लेना होता तो सुप्रीमकोर्ट परीक्षा स्थगित कर देती. उम्मीद है कि प्रधानमंत्री की तरह न्यायधीश बिना बच्चों के नहीं होगें. कल उन्हीं जजों ने सरकार के मांग को ठुकरा दिया जिसमें सरकार विदेशों में परीक्षा केंद्र स्थापित करने की बात कह रही थी, जिससे कि अंतराष्ट्रीय छात्र भी परीक्षा में शामिल हो सकें.
मैं यह पोस्ट कुछ परीक्षार्थियों से बात करने के बाद लिख रहा हूं.
कुल-मिला कर जिनकी तैयारी नहीं है वो चाह रहे कि परीक्षा स्थगित हो जाए जिससे उन्हें तैयारी करने का कुछ और समय मिल सके.... जबकि जिन्होंने लगातार तैयारी की है उनके लिए बार-बार परीक्षा स्थगित होना, उनकी मुश्किलें बढाता है क्योंकि उन्हें तब तक एक ही दिनचर्या का अनुकरण करना होगा जब तक कि परीक्षा हो नहीं जाता.
उदहारण के लिए यदि मेडिकल प्रवेश परीक्षा की बात करें तो. 15 लाख से अधिक परीक्षार्थी में कितनों की ऐसी तैयारी होती है जिन्हें शीर्ष 50 हजार में जगह मिल सके? जाहिर है कि वह संख्या 50 हजार ही होगी, पर उन 15 लाख में अनुमानित 2 से ढाई लाख होते हैं जिन्हें अपनी तैयारी के हिसाब से इस 50 हजार में आने की उम्मीद होती है.
चुकि बात अब अंतराष्ट्रीय हो चली है, हो सकता है कि मलाला और थन्बर्ग बाद इमरान खान और ओबामा भी इस पर अपने विचार व्यक्त करें. पर क्या कोई इस तथ्य से इंकार कर सकता है कि शतप्रतिशत परीक्षार्थियों को ना सिर्फ उनका पसंदीदा परीक्षा केंद्र का शहर मिला है बल्कि उन्हें 5 बार शहर बदलने का मौका भी दिया गया. ना सिर्फ़ परीक्षा केद्रों की संख्या बढाई गयी बल्कि पहले जहां एक कमरे में 24 परीक्षार्थी को बिठाने की योजना थी अब वहां 12 परीक्षार्थियों को बिठाया जायेगा.
इस हो हल्ला में, राजनीतिक प्लेयरों के अलावे प्राइवेट कॉलेज और लेफ्ट-इलिब्रल का भी एक नेक्सस है, पर उसको अभी जाने देते हैं.
पहले परीक्षा को लेकर मेरी भी चिंताएं थीं पर परीक्षार्थियों से बात करने के बाद वो दूर होती चली गयी. 2019 के बाद से, सरकार अपना सन्देश स्पष्ट रूप से प्रसारित नहीं कर पा रही है, जो कि पहले के वर्षों इसकी खाशियत हुआ करती थी. पूरे नागरिकता कानून में यही हुआ था. एक बार फिर यह विभिन्न परीक्षा को लेकर हो रहा है.
मोर के साथ फोटो को प्रचारित करने में जितना यत्न लगाया जाता है उसका आधा भी दूसरी घटनाओं पर लगाया जाय तो बार-बार ऐसा कन्फ्यूजन नहीं होगा.
यहां तक कि मोर के साथ वाली फोटो में भी संदेश स्पष्ट नहीं हो पाया. प्रधानमंत्री कार्यालय और खुद भाजपा को समझना होगा कि किसी भी घटना को तोड़-मड़ोर करने वाले थाली और दिया जलाने को महामारी का इलाज बताने लगे और इसमें बड़ा योगदान गोदी-मिडिया का ही है.
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