भगवत गीता २रे विश्वयुद्ध के समाप्ति का कारण.
1945 में, अमेरिका के 8 में 7 फाइव स्टार एडमिरल्स और जनरल ने खा था
कि जापान पर एटोमिक बम से हमला ना सिर्फ एक गैर जरुरी सैन्य करवाई थी बल्कि नैतिक
रूप से भी अनुचित था. एक जिम्मेदार देश को कभी भी ऐसी करवाई नहीं करनी चाहिए, वो
भी दुश्मन देश के नागरिकों के खिलाफ तो बिलकुल भी नहीं. उस समय अमेरिका के एक के
बाद एक हमले ने 2 लाख से अधिक लोगों को तो तत्क्षण लील लिया, फिर अनगिनत लोग रेडिएशन
के कारण उसके बाद भी मरते रहे.
अमेरिका ने सिर्फ 20 दिन पहले ही अपनी ताकत का परिक्षण किया था और
फिर तुरंत इसका प्रयोग, कई बार लगता है कि क्या जापान ने सच में अमेरिका को बाध्य
कर दिया. पर सैन्य ठिकानों के बदले नागरिकों को हताहत करने की बात कितना तर्क संगत
था? और रॉबर्ट ओप्पेन्हीमेर को, जिन्हें अमेरिका में ‘एटम बम का जनक’ कहा जाता है,
इसका जवाब भगवत गीता में मिल गया.
रॉबर्ट, युद्ध कालीन प्रयोगशाला के हेड थे और उनके साथ काम कर रहे
दूसरे वैज्ञानिकों का विचार कहीं से भी एटम बम का नागरिक ठिकानों पर प्रयोग करने
का ना था. पर रॉबर्ट को भगवत गीता के 9वें अध्याय के 18वें श्लोक को याद किया. जिसमें
कृष्ण, अर्जुन से कहते हैं, “सभी भूतों का भरण
पोषण करने वाला, सबका
स्वामी, साक्षी अर्थात सभी
कर्मों को देखने वाला, सबका
वास स्थान, प्रत्युपकार
न चाहते हुए सभी का हित करने वाला, सबकी उत्त्पत्ति और मृत्यु का हेतु, आधार, स्थिति, सबका निधान और नाश
करने वाला कारण भी मैं ही हूँ।“
इस तरह गीता के उस श्लोक ने दूसरे
विश्वयुद्ध को कुछ इस प्रकार समाप्त किया कि विश्व को तीसरे विश्वयुद्ध के लिए लंबा
इंतजार करना पड़े.
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