फैज-अयोध्या-रामभक्ति
जाकिर नाइक को ना सिर्फ संस्कृत भाषा का ज्ञान है बल्कि तमाम हिन्दू ग्रंथों और कर्म-कांड के ज्ञान के मामले में भी वह आम पंडितों से आगे है. वह कई बार सभी भारतीय विद्यालयों में संस्कृत अनिवार्य करने की बात कर चुका है. ऐसे कितने ही मुसलमान हैं जो विभिन्न विश्वविद्यालयों में संस्कृत के विभाग अध्यक्ष रह चुके हैं. इसी तरह जेएनयु के एक प्रोफ़ेसर आनंद को कुरान का ज्ञान आम मौलवियों और इमामों से अधिक है. पर क्या आनंद को इमाम बनने का मौका मिलेगा?
आज जो फैज, पैदल राम जन्मस्थान पहुंच रहे उन्होंने कभी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या-धर्म विज्ञान संकाय में एक मुसलमान प्रोफ़ेसर की न्युक्ति को जायज बताया था.
फैज का मजहब, गौ-रक्षा की लड़ाई में उन्हें खास बनाता है. कई बार जब आम हिन्दू, किसी मुसलमान को सर बैठाता तो फैज़ उस मुसलमान की असलियत बताते हैं. फैज़ ने खुले रूप से नागरिकता संसोधन कानून का समर्थन किया.
शायद हर मौके पर फैज़ सही ना हो, पर उसके खिलाफ कई फ़तवे जारी किये जा चुके हैं. फैज़ जो कर रहा है वो ना आम मुसलमानों को स्वीकार्य है ना ही इस्लाम इसकी इजाज़त देता है.
फैज़ अपनी तरह का अकेला मुसलमान है, पर वह सिर्फ़ अकेला नहीं है. आप एक ऐसे मुसलमान के बारे में सोचिये जिसका जन्म केरल जैसे राज्य में हुआ हो, लेकिन वह ना सिर्फ राम मंदिर के समर्थन में हो बल्कि वह मथुरा और काशी के ज्ञानवापी पर भी वही राय रखता है जो एक हिन्दू का हो सकता है.
के के मोहम्मद एक ऐसा ही मुसलमान है, पर राम के प्रति उसका प्रेम फैज जितना दिखावटी नहीं है. के के मोहम्मद, 1977 में राम जन्मस्थान की खुदाई करने वाले दल का हिस्सा थे और तभी से वो राम मंदिर के पक्ष में बोलते-लिखते आ रहे हैं.
लेकिन फैज़ के प्रेम को भी दिखावटी कह कर नकारा नहीं जा सकता. हिन्दू विश्वास में इतनी विभिन्नता है कि ना सिर्फ़ फैज़ बल्कि ओवैसी जैसे लोग भी कहीं ना कहीं फिट हो जायेगें.
और जहां तक दिखावा करने की बात है तो यह निश्चित करना चाहिए कि उद्धव ठाकरे और फैज खान में कौन बड़ा मुसलमान है या शुशील मोदी और फैज में कौन बड़ा हिन्दू है? क्या इसे मापने का कोई पैमाना है?
अरुण जेटली भी राम मंदिर का इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक हित को साधने के लिए करते थे, विकिलीक्स ने खुलासा किया था.
और यह बात भी छुपी नहीं है कि आज के हिन्दू हृदय सम्राट कभी सुब्रमण्यम स्वामी भी कभी(1991) मानते थे कि भाजपा, राम मंदिर और 370 के मुद्दे को अपने मुस्लिम विरोध के कारण हवा दे रही थी.
ऐसे में एक मुसलमान से क्या-क्या अपेक्षा की जा सकती है.
और फिर फैज़ की राम-भक्ति को दिखावा कहना भी कहाँ तक जायज है, जब उसने इस सबके लिए अपनी नौकरी छोड़ दी हो. किसी हिन्दू का राम भक्त होना जितना सामान्य है, वह फैज के लिए उतना ही असमान्य है.
फैज, स्वदेशी मुसलमानों का एक ऐसा डिज़ाइन है जो ना सिर्फ अन्य धर्मों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास रखता है बल्कि खुले तौर पर हिन्दू राष्ट्र की भी मांग करता है. उसे अयोध्या आने से रोकने के बजाय, उसका दूसरे पदयात्रियों की ही तरह स्वागत होना चाहिए.
एक ऐसा कौम, जो मंदिर से प्राप्त प्रसाद को खाने के बजाय फेंकना पसंद करता है उससे निकले फैज से बहुत अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए. उसका बेजां विरोध उसे हजारी लाल, राम कोठारी, शरद कोठारी, राजेश अग्रवाल, त्रियुग नारायण तिवारी और कई कार सेवकों के अपेक्षा बड़ा ही बनाएगा.
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