ओपेराष्ण मेघदूत और वर्तमान चीन विवाद
'अमन की आशा' गैंग पाकिस्तान के साथ सुलह चाहती पर चीन से युद्ध. 'मोदी चीन से डर गया', 'चीन ने भारत की जमीन पर कब्ज़ा कर लिया' इस तरह के दुष्प्रचार चल रहे हैं. इस दुष्प्रचार की गिरफ्त में कोई भी आ सकता है, पर इतना याद रखें कि मोदी यदि चीन से डर भी जाए तो भी भारतीय सेना को फर्क नहीं पड़ता. मोदी के कहने पर भारतीय सेना 2 कदम आगे तो बढ़ सकती है लेकिन एक भी कदम पीछे नहीं खींच सकती है. मोदी पर आपका अविशवास हो सकता है कि जायज हो पर पर भारतीय सेना पर विश्वास रखिये, इसलिए नहीं कि 1962 में चीन से एक बड़ा युद्ध हारने के बाद, 1967 और 1986 में भारतीय सेना ने चीनी सेना को शिकस्त दी, बल्कि इसलिए कि भारतीय सेना की प्रतिबद्धता का कोई दूसरा उदहारण है ही नहीं.
इसके लिए आप बस दो विषयों को पढ़ लीजिये. पहला 'ऑपरेशन मेघदूत' और दूसरा 'माउन्टेन ऑफ़ पीस' .
1984 में एक ऑपरेशन चला कर भारतीय सेना ने, दुनियां के सबसे उंचे युद्ध क्षेत्र शियाचिन पर कब्ज़ा किया था. 1984 से पहले यह क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकारिक नक्से में आता था इसलिए यदि शियाचिन के किसी भी पहाड़ी पर चढाई करनी होती थी तो पर्वतारोही पाकिस्तान से वीजा लेते थे. पाकिस्तान का कब्ज़ा ना होने के वाबजूद अमेरिका सहित कई महत्वपूर्ण देश शियाचिन को पाकिस्तान का ही हिस्सा मानते थे. ऊंचाई पर होने के अलावा यह पूरा क्षेत्र रणनीतिक रूप से इसलिए भी महत्वपूर्ण है कयोंकि यह चीन और पाकिस्तान के बीच स्थित है. इसलिए जिस भी देश का इस उंचे क्षेत्र पर कब्ज़ा होता, उसे स्पष्ट बढ़त मिल जाती और यदि इसपर पाकिस्तान का कब्ज़ा हो जाता तो परोक्ष रूप से चीन का ही कब्ज़ा समझिये.
-50 डिग्री तापमान और करीब 1000 सेंटीमीटर बर्फ प्रति वर्ष गिरने के कारण के साथ यहां के पहाड़ियों की ऊंचाई 5 हजार से 20 हजार फिट तक है. आप कल्पना करें कि सामान्य सर्दियों में बर्फ की बारिश हो तो क्या होगा? पर शियाचिन में सर्दी-गर्मी नाम के मौसम ही नहीं होते क्योंकि यहां हमेशा तापमान माइनस में ही होता है. शरीर के हर हिस्से को हर समय हरकत में रखना पड़ता वरना वो हिस्सा जम कर लकड़ी के समान हो जाता है और कभी-कभी ऐसे हिस्से को काटना भी पड़ता है.
खैर, इस पूरे क्षेत्र पर 1984 से भारत का ही कब्ज़ा है. लेकिन जब 2004 से लेकर 2014 तक, सरकार की तरफ से कई बार ऐसे प्रयास हुए कि इस क्षेत्र से सेना हटा लिया जाय. क्यों? सरकार का तर्क था कि हरेक वर्ष यहां कई सैनिकों की मौत बिना लड़ाई किये ही हो जाती है, कभी बर्फ में दब कर तो कभी किसी दूसरे कारणों से. इसके अलावे इस गेल्शियर पर कब्ज़ा जमाये रखने के लिए प्रत्येक दिन 1 कड़ोर का खर्च आता है. सरकार की चिंता भी जायज थी. क्योंकि अबतक करीब 1000 हजार भारतीय सैनिक और 2000 पाकिस्तानी सैनिकों को बिना युद्ध किये ही जान गवानी पड़ी है.
'माउन्टेन ऑफ़ पीस'? मनमोहन सिंह और उस समय की पाकिस्तान सरकार के अनुसार, इस पूरे क्षेत्र को 'माउन्टेन ऑफ़ पीस' में तब्दील कर देना चाहिए. मतलब, दोनों में से किसी भी देश की सेना वहां नहीं रहेगी. इसका सीधे-सीधे अर्थ था कि भारत को वहां से सेना हटानी पड़ती और 1984 से जो बढ़त भारत ने ले रखी थी उसे खोना पड़ता.
2004 से 2014 तक, भारतीय सेना के 5 सेनाध्यक्ष बदले और हर बार सरकार ने प्रयास किया कि शियाचिन से सेना हटा ली जाय. हर तरह के हथकंडे अपनाने के बाद भी जब किसी भी सेनाध्यक्ष ने सरकार की ना सुनी, तो 2012 में सरकार अपनी जिद्द पर अड़ गयी और उस समय के सेनाध्यक्ष जेनेरल वीके सिंह को विवादों में घसीटना शुरू किया. मसलन उनके जन्म-तिथि को लेकर विवाद तो हुआ ही, एक बार एक फ़र्जी ख़बर चलाई गयी कि वीके सिंह तख्ता पलट करना चाहते हैं.
अंत में वीके सिंह ने कहा कि सरकार यदि लिखित में दे दे तो शियाचिन से सेना हटा ली जाएगी, पर सरकार ने ऐसा किया नहीं.
'ऑपरेशन मेघदूत' की कहानी इतनी दिलचस्प है कि शब्दों में बयां करना मेरी क्षमता के बाहर है, पर इतना विश्वास के साथ कह सकता हूं कि जिसने भी ऑपरेशन मेघदूत की कहानी को पढ़ा होगा वह इस बात पर कभी विश्वास नहीं कर सकता कि भारतीय सेना के रहते किसी दूसरे देश ने भारत की पूज्य भूमि का इंच भी कब्ज़ा किया हो.
इसके लिए आप बस दो विषयों को पढ़ लीजिये. पहला 'ऑपरेशन मेघदूत' और दूसरा 'माउन्टेन ऑफ़ पीस' .
1984 में एक ऑपरेशन चला कर भारतीय सेना ने, दुनियां के सबसे उंचे युद्ध क्षेत्र शियाचिन पर कब्ज़ा किया था. 1984 से पहले यह क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकारिक नक्से में आता था इसलिए यदि शियाचिन के किसी भी पहाड़ी पर चढाई करनी होती थी तो पर्वतारोही पाकिस्तान से वीजा लेते थे. पाकिस्तान का कब्ज़ा ना होने के वाबजूद अमेरिका सहित कई महत्वपूर्ण देश शियाचिन को पाकिस्तान का ही हिस्सा मानते थे. ऊंचाई पर होने के अलावा यह पूरा क्षेत्र रणनीतिक रूप से इसलिए भी महत्वपूर्ण है कयोंकि यह चीन और पाकिस्तान के बीच स्थित है. इसलिए जिस भी देश का इस उंचे क्षेत्र पर कब्ज़ा होता, उसे स्पष्ट बढ़त मिल जाती और यदि इसपर पाकिस्तान का कब्ज़ा हो जाता तो परोक्ष रूप से चीन का ही कब्ज़ा समझिये.
-50 डिग्री तापमान और करीब 1000 सेंटीमीटर बर्फ प्रति वर्ष गिरने के कारण के साथ यहां के पहाड़ियों की ऊंचाई 5 हजार से 20 हजार फिट तक है. आप कल्पना करें कि सामान्य सर्दियों में बर्फ की बारिश हो तो क्या होगा? पर शियाचिन में सर्दी-गर्मी नाम के मौसम ही नहीं होते क्योंकि यहां हमेशा तापमान माइनस में ही होता है. शरीर के हर हिस्से को हर समय हरकत में रखना पड़ता वरना वो हिस्सा जम कर लकड़ी के समान हो जाता है और कभी-कभी ऐसे हिस्से को काटना भी पड़ता है.
खैर, इस पूरे क्षेत्र पर 1984 से भारत का ही कब्ज़ा है. लेकिन जब 2004 से लेकर 2014 तक, सरकार की तरफ से कई बार ऐसे प्रयास हुए कि इस क्षेत्र से सेना हटा लिया जाय. क्यों? सरकार का तर्क था कि हरेक वर्ष यहां कई सैनिकों की मौत बिना लड़ाई किये ही हो जाती है, कभी बर्फ में दब कर तो कभी किसी दूसरे कारणों से. इसके अलावे इस गेल्शियर पर कब्ज़ा जमाये रखने के लिए प्रत्येक दिन 1 कड़ोर का खर्च आता है. सरकार की चिंता भी जायज थी. क्योंकि अबतक करीब 1000 हजार भारतीय सैनिक और 2000 पाकिस्तानी सैनिकों को बिना युद्ध किये ही जान गवानी पड़ी है.
'माउन्टेन ऑफ़ पीस'? मनमोहन सिंह और उस समय की पाकिस्तान सरकार के अनुसार, इस पूरे क्षेत्र को 'माउन्टेन ऑफ़ पीस' में तब्दील कर देना चाहिए. मतलब, दोनों में से किसी भी देश की सेना वहां नहीं रहेगी. इसका सीधे-सीधे अर्थ था कि भारत को वहां से सेना हटानी पड़ती और 1984 से जो बढ़त भारत ने ले रखी थी उसे खोना पड़ता.
2004 से 2014 तक, भारतीय सेना के 5 सेनाध्यक्ष बदले और हर बार सरकार ने प्रयास किया कि शियाचिन से सेना हटा ली जाय. हर तरह के हथकंडे अपनाने के बाद भी जब किसी भी सेनाध्यक्ष ने सरकार की ना सुनी, तो 2012 में सरकार अपनी जिद्द पर अड़ गयी और उस समय के सेनाध्यक्ष जेनेरल वीके सिंह को विवादों में घसीटना शुरू किया. मसलन उनके जन्म-तिथि को लेकर विवाद तो हुआ ही, एक बार एक फ़र्जी ख़बर चलाई गयी कि वीके सिंह तख्ता पलट करना चाहते हैं.
अंत में वीके सिंह ने कहा कि सरकार यदि लिखित में दे दे तो शियाचिन से सेना हटा ली जाएगी, पर सरकार ने ऐसा किया नहीं.
'ऑपरेशन मेघदूत' की कहानी इतनी दिलचस्प है कि शब्दों में बयां करना मेरी क्षमता के बाहर है, पर इतना विश्वास के साथ कह सकता हूं कि जिसने भी ऑपरेशन मेघदूत की कहानी को पढ़ा होगा वह इस बात पर कभी विश्वास नहीं कर सकता कि भारतीय सेना के रहते किसी दूसरे देश ने भारत की पूज्य भूमि का इंच भी कब्ज़ा किया हो.
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