हर्षवर्धन-जावेद अख्तर-मुगलई चिकन

हर्षवर्धन है इसका नाम, उस दिन जिद्द करने लगा कि सर आपके साथ एक फ़ोटो, बस एक सेल्फी. मैंने सोचा चलो ले लो फ़ोटो, तुम भी क्या सोचोगे. हर्षवर्धन के ख़ुशी का 'हिकाना' नहीं था इसके बाद. आप उसके और मेरे चेहरे का भाव देख कर इसका अंदाजा लगा सकते हैं. हां, हर्षवर्धन को 'फ़ावेद बीमारी' है, इसलिए 'ठिकाना' को 'हिकाना' बोलता है. इसे यह बीमारी कैसे लगी? आज इसी पर बात करेगें. पहले बंदे का थोड़ा सा बैकग्राउंड भी जान लें.

हर्षवर्धन के ताल्लुकात, रायबरेली के राज परिवार से हैं, इनके ससुर जी सोनिया गांधी के यहां पोछा मारते हैं, इसलिए हर्षवर्धन की जब शादी होनी थी तो ससुर ने सोनिया गांधी से कह कर, हर्षवर्धन की नौकरी 'ताज होटल' में लगावा दिया. हर्षवर्धन अब वहां होटल में पोछा मरने लगा. कभी-कभी स्टाफ़ की कमी के कारण उसे वेटर का काम भी करना पड़ता था, बदले में रतन टाटा इसकी और इसकी पत्नी के अलग से खाना पैक करवा देते हैं. कुल मिला कर हर्षवर्धन को यही दहेज़ में मिला था.

उस दिन भी होटल में स्टाफ़ कम था, तो हर्षवर्धन पहले पोछा मारा और फिर वेटर के काम में भीड़ गया. होटल में उस दिन 'जावेद अख्तर' जी आये. हर्षवर्धन उन्हें 'फ़ावेद फाहब' बुलाता है, हालांकि तब उसे बीमारी लगी नहीं थी इसलिए जावेद ही बुलाता है. आते ही जावेद साहब ने 'बनारसी पान' खाया (ताज होटल है, सब कुछ मिलता है) और एक प्लेट मुगलई चिकन और एक नान का आर्डर दिया. होटल में स्टाफ़ उस दिन कुछ ज्यादा ही कम था, इसलिए हर्षवर्धन ने ही मुगलई चिकन बनाया, इस बीच जावेद साहब बख्तियार खिलजी (वही पटना के नजदीक बख्तियारपुर वाले) के परोपकारी कार्यों पर शायरी लिखने लगे.

कुछ देर बाद हर्षवर्धन ने मुगलई चिकन, नान सहित जावेद साहब को सर्व कर दिया. पहला निवाला लेते ही जावेद साहब ने कहा 'फ़ॉल्ट' है. हर्षवर्धन अंदर गया फिर से मुगलई चिकन बना लाया. इस बार जावेद साहब गुस्सा हो गये, बोले कि भोपड़ी के इसमें तो बिलकुल भी 'फ़ॉल्ट' नहीं है. हर्षवर्धन तो जावेद साहब के इस रिएक्सन को देख कर अचंभित था. एक तरफ जावेद साहब कह रहे थे कि खाने में फ़ॉल्ट भी नहीं है वहीं दूसरी तरफ गुस्सा भी हो रहे थे. हर्षवर्धन करे तो करे क्या? वह दौड़ता हुआ अन्दर गया और मुगलई चिकन के बदले दूसरा ही आइटम बना लाया. इस बार जावेद साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर था. गुस्से में वो गाली देने लगे, बोले, ''बुलाओ भोपड़ी का, कौन है मनेजर तुम्हारा?'' रतन टाटा दौड़ते-दौड़ते आये. जावेद साहब के कहने पर रतन टाटा ने भी टेबल पर रखे मुगलई चिकन को चख़ कर देखा. उन्होंने कहा, ''सब ओके है जावेद साहब, दिक्कत क्या है?'' असल में रतन टाटा ने इससे पहले कभी मुगलई चिकन छोड़ो, चिकन भी नहीं चखा था, क्योंकि वो साकाहारी हैं, शुद्ध सात्विक भोजन लेते हैं.

जावेद साहब से रहा नहीं गया, बोले हटो भोपड़ी के हम्म खुदे बनायेगें. हर्षवर्धन डरते-डरते जावेद साहब को होटल के किचन ले गया.

मुगलई चिकन पकाने के दरम्यान जावेद साहब ने, हर्षवर्धन से पूछा, ''फ़ॉल्ट कहां है?''

हर्षवर्धन, ''जी. मैं कुछ समझा नहीं''.

जावेद, ''अरे इसमें देने के लिए फ़ॉल्ट तो होगा ना?'' स्टोव पर चढ़े कढ़ाई की तरफ़ इशारा करते हुए कहा.

हर्षवर्धन, ''नहीं जनाब हमारे होटल में कोई फ़ॉल्ट नहीं है''

जावेद साहब फिर गरम हो गये, गुस्से में कहने लगे कि कहां से आये हो? नौकरी तुमको कौन दिया तुमको इस होटल में.

हर्षवर्धन ने सब बताया कि वो उत्तरप्रदेश के रायबरेली से है, वहां के राजपरिवार से उसके संबंध हैं, उसके ससुर ने क्विन सोनिया से कह कर उसकी नौकरी लगवाई, आदि आदि.

जावेद साहब पूछे, ''तुम्हारे यहां कोई फ़ॉल्ट नहीं खाता क्या?''

हर्षवर्धन को बात समझ में नहीं आई , उसने जवाब नहीं दिया तो जावेद साहब ने उसका कॉलर पकड़ कर दो-चार थप्पड़ लगाते हुए पूछा, ''बोल भोपड़ी के, बोलता क्यूं नहीं? मुंह में गूंह भर रक्खा है क्या? कोई फ़ॉल्ट खाता है कि नहीं तुम्हरे यहां?'' इसपर हर्षवर्धन के अन्दर का हर्षवर्धन जग गया, उसने भी जावेद साहब को दो-चार थप्पड़ खिंच दिया.

उधर सीसीटीवी पर ये सब देख कर रतनटाटा ने जावेद के घर फ़ोन कर उनके निजी रसोइये को ही बुलवा लिया. पर जावेद और हर्षवर्धन में युद्ध छिड़ चुका था, जब तक रसोइया आया तब तक हर्षवर्धन के कपड़े फट चुके थे और जावेद साहब का एक दांत हिल चुका था. बीच-बचाव करके युद्ध पर विराम दिया गया, अपने रसोइये को देख कर जावेद साहब ख़ुश भी हुए.


रसोइये ने पहले से बने मुगलई चिकन को चखा और चखते ही कहा, ''इसमें नमक कम है, थोड़ा नमक दीजिये''

हर्षवर्धन ने चिकन में नमक मिलाया, फिर जावेद साहब ने चखा और कहा, ''अब फ़ीक है''.

इस घटना के बाद, हर्षवर्धन का दिमागी संतुलन बिगड़ गया और वह शब्दों को कुछ अजीब तरीके से बोलता है. वो 'साल्ट' को फ़ॉल्ट, ठिकाना को 'हिकाना', यहां तक कि 'जावेद' को भी 'फ़ावेद' बुलाता है. डोक्टरों ने इस नई बीमारी को ही 'फ़ावेद बीमारी' बताया है.

हर्षवर्धन को इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद, जावेद साहब फिर होटल आये. अब दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती है, ये दोनों लोग जम के गपियाते हैं. होटल के दूसरे कर्मचारियों में इस कारण हर्षवर्धन की इज्जत बढ़ गयी है.

हर्षवर्धन काशी विश्वविद्यालय से इतिहास पढ़ा है. लॉकडाउन होने के कारण होटल ताज के कर्मचारियों की अभी छुट्टी है तो जावेद साहब ने रतनटाटा से कह कर हर्षवर्धन को अपने घर ही बुला लिया है. हर्षवर्धन अब जावेद साहब के लिए खाना भी बनाता और इतिहास पर खूब चर्चा होती है. दोनों के इतिहास बोध में काफी अंतर है. कभी-कभी चर्चा के दौरान जावेद साहब को गुस्सा भी आता है और वो हर्षवर्धन को मारने के लिए भी उठते हैं, पर हर्षवर्धन उन्हें ताज होटल में हुए युद्ध का इतिहास बता देता है, जिसमें जावेद साहब का दांत हिल गया था. फिर दोनों, अल्लुदीन-मुग़ल पर चर्चा करने लगते हैं.

हर्षवर्धन के कथानुसार, फ़ावेद साहब, अल्लूद्दीन के बहुत बड़े फैन हैं. हर्षवर्धन ने बताया कि जावेद साहब रानी पद्मावती और खिलजी की एक अलग ही कहानी कहते हैं. एक बार गजवा-ए-हिन्द हो जाये तो वो अपनी कहानी को फिल्मों के माध्यम से कह पायेंगें. या फिर मोदी-शाह-योगी ही निपट जायें तो वो फिल्म बना लेगें.

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