'अम्बुबाची मेला'

कुल 51 शक्तिपीठ हैं भारत में, जिसमें से सबसे प्रसिद्द गुवाहाटी का माँ कामख्या मंदिर है और हर वर्ष मनाया जाने वाला 'अम्बुबाची मेला', जिसे इस वर्ष मंदिर प्रशासन ने, महामारी को देखते हुए नहीं मनाने का फ़ैसला लिया है. अगले महीने, अर्थात जून में, जब सूर्य मिथुन राशी में प्रवेश करेगा और ब्रह्मपुत्र नदि मानसून के कारण अपना दायरा बढ़ा लेगी, तब माँ कामख्या का मासिक धर्म शुरू होता है. हिंदी महीने के अनुसार यह असाढ़ में मनाया जाता है.

स्त्रियों के जिस मासिक धर्म पर, अक्सर बात करने से बचा जाता है और कुछ जगहों पर तो इसे अपवित्र भी माना जाता है वहीं यह मेला इस पूरी तरह से माँ कामख्या के इसी मासिक धर्म के शुरुआत के उत्सव होता है.

खुद 'अम्बुबाची' का अर्थ ही स्त्रियों की शक्ति और उनके बच्चा जन्म देने की क्षमता से है. नीलांचल पर्वत पर अवस्थित इस मंदिर में पिछले 600 से भी अधिक वर्षों से इस मेले का लागातार आयोजन होता रहा है. माँ के मासिक धर्म शुरू होने से पहले, योनी रूप माँ को, सफ़ेद कपड़ों से चारों ओर से ढक कर गर्भ गृह बंद कर दिया जाता. तीन दिनों बाद जब पट खुलते हैं, तो कपड़ा रक्त से लाल होता है और माँ का दर्शन करने आये लाखो साधू-सन्यासी, श्रद्धालु और आस-पास के लोग इसी को, उत्सव के रूप में मनाते हैं.

खून से लाल हुए कपड़े को पवित्र मान कर भक्तों के बीच इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.

केरल के चेंगन्नुर के एक मंदिर में भी इसी तर्ज पर एक पर्व मनाया जाता है. असम में तो जब किसी भी लड़की का पहला मासिक धर्म होता तो उसे भी उत्सव मान कर घर में छोटी पूजा रक्खी जाती है, जिसे 'तुलोनी बिया' के नाम से जाना जाता है.

जड़ से दूर हो चुके, बल्कि जड़ हो चुके, हरेक मौके पर देश की मान्यताओं का मजाक उड़ाने वाले, गणेश पर, सबरीमाला के अयप्पा का मजाक उड़ाने वालों को यह नहीं समझ में आएगा कि देश में चल रहे हरेक परम्परा के पीछे एक रहस्य है जिसे जानना आवश्यक है, इसके सामजिक प्रभाव को समझना जरुरी है.

गणेश को हुए प्लास्टिक सर्जरी का वीडियो प्रूफ नहीं है हमारे पास लेकिन फिर भी गणेश हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं. विश्व में जब प्लास्टिक सर्जरी नाम की कोई चीज नहीं थी तब भी गणेश थे. गणेश के हर अंग हमारे लिए अलग-अलग महत्व है. बाद में कभी इसपर लिखूंगा.

अभी के लिए इतना समझिये, कि भारत की कोई परंपरा यदि समझ में ना आ रही हो तो जानकार/विशेषज्ञों से पूछिए, ना कि उसका मजाक बनाने में लग जाइये. आखिर हर विज्ञान को जानने के लिए यही प्रक्रिया तो अपनाई जाती है.

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