दिया

जला कर बुझा कर दिए को हमेशा,
क्यूं खुश है ये दुनियां 'गजब' इसमें क्या है?

वसीहत में लिक्खी गयी गर ना होती,
क्या सच है कि ये मुफलिसी भी ना मिलती??2??

क्या सच है कि जहां ये अंधेरा बहोत है?
या उजालों ने सब-कुछ छिपा रक्खा है??3??

बारीक़ नगाहों से देखो जहां को,
कसम से जहां ये 'खाली मरकज' बना है।4

जहन्नुम का इनको बड़ा खौफ़ होता 
इसलिए मरकज में भी दिया जला है।5

कैद हैं हम शायद चिडियांघरों में
हयात ख़ूब है हमारे पाँखों में ।6
(हयात-जान)

फ़िर भी 'हरकत किसी की' ने  मुझको कैदी बनाया?
चौकदारों से तो सिर्फ अपना फ़र्ज ही निभाया।7

पथिक तुम क्यों हो बिसरे, तिमिर से यूं इतना?
कोई तो होगा चौकीदार, ये परंपरा है।8

आओ जलाएं उम्मीद-ए-दिवाली,
मचल जाए फिर से जहां ये हमारी।9

कदम फिर से थिरके, जनम हो नया सा 
चलें फिर बेकौफ़, जैसे झोंका हवा का।10










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