लक्षमण के ब्रह्मचर्य का सत्य

आज फिर लक्ष्मण जिद्द करने लगे कि वो सीता के साथ वन में ही रहना चाहते हैं, पर सीता ने मना कर दिया. आचार्य रजनीश कहते हैं कि लक्ष्मण का राम के लिए दिखाया गया प्रेम एक मिथ्या है. लक्ष्मण हमेशा सीता को दिल-ओ-जान से चाहते थे, इसलिए अपनी धर्मपत्नी उर्मिला को छोड़ कर सीता के साथ वनवास जाने पर अड़ गये. सीता को भी लक्ष्मण पर पहले ही शक था. इसलिए सीता ने लक्ष्मण का टेस्ट लिया. जब सीता ने वन में उस स्वर्ण हिरण को देखा तो उस पर मोहित होने का नाटक करने लगीं, वरना अयोध्या के एशो-आराम-राज-धन-वैभव छोड़ कर वन आई सीता भला एक सोने के समान हिरण पर क्यूं मोहित होती? दरअसल सीता देखना चाहती थी कि कहीं लक्ष्मण आगे जाकर उस हिरण का वद्ध तो नहीं करते? यदि लक्ष्मण ऐसा करते तो सीता समझ जाती कि लक्ष्मण ने उन्हें इम्र्प्रेस करने के लिए ये सब किया. पर हिरण के वद्ध के लिए राम खुद आगे जाते हैं, और फिर बहुत आगे चले जाते हैं. हिरण अपने अंतिम समय में राम की आवाज में कराहने लगा तो सीता और लक्षमण दोनों को लगा कि राम तो अब गये!! इसलिए एक तरफ जहां सीता विचलित हुयी, वहीं लक्ष्मण मन ही मन प्रसन्न हुए कि यदि राम गये तो उसका रास्ता साफ़ है. लक्ष्मण तो सपने देखने लगा कि अभी वनवास में 10 वर्ष बांकी हैं, अब राम भी चले गये तो बचे वो और सीता. इसलिए जब सीता ने लक्ष्मण को राम के प्राण की रक्षा के लिए कहा तो लक्ष्मण बहाने बनाने लगे, मसलन भैया ने उन्हें सीता को छोड़ कर कहीं जाने नहीं कहा है, इस तरह वह यदि सीता को छोड़ कर चले तो राम के आदेश की अवहेलना होगी जोकि गलत होगा, आदि-आदि. वहीं लक्ष्मण के मन में भी चल रहा था कि यदि वो इस समय सीता को छोड़ कर गया तो क्या पता, यह स्त्री जो एक हिरण पर मोहित हो गयी, कहीं मुझ से हैंडसम किसी दूसरे पुरुष के साथ भाग जाए, इसलिए वो सीता को छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे!! सीता जितना लक्ष्मण को जाने का जिद्द करती, लक्ष्मण का शक सीता पर उतना बढ़ता जाता. वहीं सीता का लक्ष्मण पर भी शक गहराता जा रहा था. सीता को तो लक्ष्मण पर पहले से भी गुस्सा था, पर जिस तरह भाभियाँ कभी अपने देवरों पर गुस्सा नहीं करती, सीता ने भी नहीं किया. वरना लक्ष्मण उर्मिला, जो कि सीता की बहन भी थी, उसे छोड़ कर तो चले ही आये थे, ऊपर से वन में वो राम और सीता के बीच कबाब में हड्डी के समान थे. लक्ष्मण हर समय पहरा दिए रहता था कि कहीं राम सीता के साथ सहवास ना कर ले, क्योंकि इसके बाद दोनों पति-पत्नियों के बीच प्यार और भी बढ़ जायेगा और बच्चा होने के बाद तो लक्ष्मण का कोई चांस ही नहीं है!!


खैर, लक्ष्मण सीता को अधिक नाराज भी नहीं करना चाहता था इसलिए जब उसे लगा कि अब राम प्राण त्यागने ही वाले हैं तो उसने बेमन से एक रेखा खिंच दी और सीता को उससे बाहर नहीं जाने को कहा. हालांकि लक्ष्मण को भी पता था कि सीता इस रेखा को नहीं मानने वाली, यदि कोई हैंडसम पुरुष सीता को दिखा तो वो उसके साथ चली जायेगीं. इसलिए वो तीव्र गति से राम की आवाज के दिशा में बढ़ा. एक तरफ उसे जहां ख़ुशी थी कि राम गये, वहीं वह सीता के किसी पुरुष के साथ भागने से पहले ही वापस लौटना भी चाहता था. पर लक्ष्मण को दोनों तरफ निराशा ही हाथ लगी, राम तो जिन्दा थे ही ऊपर से लौट कर आया तो कुटिया में सीता भी नहीं थी. यहां राम लक्ष्मण दोनों को शक था कि सीता किसी के साथ भाग गयी है पर वो ना इसे स्वीकार रहे थे ना ही एक दूसरे से अपने शक को साझा कर रहे थे..!! भला एक पुरुष यह कैसे स्वीकार करे कि उसकी पत्नी उसे छोड़ कर भाग गयी, उसका पौरुष कम नहीं हो जायेगा. ओशो कहते हैं कि इश्वर यदि है तो राम जैसा पति किसी भी स्त्री को ना दें और ना ही लक्ष्मण जैसा भाई.


पर ओशो कुछ बातों को अपनी सुविधानुसार भूल जाते हैं. जब रावण सीता को किडनेप करके ले जा रहा होता है तो उसकी लड़ाई जटायु से होती है, इस बीच मौका देख कर सीता अपने गहनों को एक पोटली में बांध कर पुष्पक विमान से नीच गिरा देती हैं, जो सुग्रीव और उनके साथियों को प्राप्त होता है. राम-लक्ष्मण जब सीता को खोजते-खोजते सुग्रीव के पास पहुंचते हैं तो सुग्रीव उन्हें वह गहने दिखाता है. लक्ष्मण को एक-एक कर गहने दिखाए जाते हैं, आम तौर पर कोई भी पहले किसी के शरीर के ऊपर का भाग देखता है. इसलिए पहले माथे का टीका-बिंदिया, फिर कानों की बालियां, गले का हार और हाथों की चूड़ियाँ दिखाए जाते हैं. लक्ष्मण इन गहनों से कुछ पता नहीं लगा पाते तो वो बचे हुए गहनों को भी देखते हैं और उनकी नजर पैरों के पायल और पैर के उँगलियों में पहने जाने वाली बिछिया पर पड़ती है. लक्ष्मण पायल और बिछियों को पहचान लेते हैं. दरअसल लक्ष्मण ने कभी भी सीता के पैर के अलावा उनके शरीर का कोई हिस्सा देखा ही नहीं था. हमेशा सिर्फ और सिर्फ पैर-चरण-पाँव-पग बस. इसके शिवाय कुछ और नहीं, कुछ भी नहीं. इसीलिए वो सीता के पायल और बिछिया को तो भली-भांति पहचान लेते हैं पर कानों, गले और माथे, यहां तक कि हाथों की चूड़ियों को भी नहीं पहचान पाते.


आज जब भैया को उनके भाई बताते हैं कि भाभी दिखने में कैसी हैं, तो रामायण की बातें संभव नहीं है शायद. पर इसके लिए राम-सीता और लक्ष्मण को मलिन करना भी ठीक नहीं है. हिन्दुओं में सैकड़ों बुड़ाइयां होंगीं पर इसके काव्यों में दिए गये तथ्यों का यूं सुविधाजनक चुनाव के आधार पर मत तैयार करना या बनाना निंदनीय है.

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