47 मदिरों से कोरोना से लड़ने के नाम पर मुख्यमंत्री राहत कोष में 10 कड़ोर रूपए

जयललिता के चलाये गये योजना के कारण तमिलनाडु सरकार, पूरे रमजान की अवधी में 2895 मस्जि.दों में 5450 टन चावल बांटेगी. इससे अलग तमिलनाडु सरकार ने 47 मदिरों से कोरोना से लड़ने के नाम पर मुख्यमंत्री राहत कोष में 10 कड़ोर रूपए जमा करने का आदेश दिया है.

चावल सीधे मस्जि.दों को दिए जायेगें, मुस्लि.मों को लगेगा कि मस्जि.द उन पर एहसान कर रहा है. दूसरे धर्म के लोग ऐसा देखेगें तो कम से कम रमजान के लिए मुस्ल.मान बनना पसंद करेगें. कुछ लोग मुस्लि.म में भी परिवर्तित हो जायेगें.

इस तरह यह सिद्ध हो जायेगा कि मुस्लि.म तलवार से नहीं फ़ैला है. बल्कि मुस्लि.म बनने से भूखों के पेट में चावल जाता है, तो कोई भी तर्कपूर्ण व्यक्ति क्यूं न मुस्लि.म बने?

हिन्दुओं को समझना चाहिए कि मंदिरों के धन का इससे अच्छा उपयोग दूसरा नहीं है. जो हिन्दू इस पर हो हल्ला मचा रहे वो इस्ला.मोफ़ोबिक की केटेगरी में आते हैं, वो नहीं चाहते कि उनके पैसे से मुस्ल.मान पढ़े, पले-बढे.

मंदिर में दान-दक्षिणा देते समय या उसके बाद, क्या किसी हिन्दू ने सामूहिक रूप से या निजी रूप से, मंदिर से कभी हिसाब लिया कि उनका पैसा कहां जाता है? तो फ़िर अभी ही क्यूं? कहने के लिए तो मंदिरों ने राहत कोष में पैसा दिया है, और राहत शिविर चलाने के साथ-साथ भोजन भी बंटवाया जा रहा है, लेकिन ऐसे मंदिरों को उँगलियों पर गिना जा सकता है. और उनमें से कोई भी तमिलनाडु का सिर्फ एक मंदिर हैं. और जब सरकार के लिए मंदिर एक ख़जाने की तरह है तो वह टैक्स ले या 47 मंदिरों से 10 कड़ोर रूपए, मंदिरों के आमदनी को देखते हुए यह समुंदर से 1 बाल्टी पानी निकालने जैसा है .

हिन्दुओं को तो फ़क्र होना चाहिए कि उनका पैसा किसी अच्छे कार्य में खर्च किया जा रहा है. खुद तमिलनाडु में रह रहे हिन्दुओं को इससे दिक्कत नहीं है, जिनको है वो वहां अल्पसंख्यक हैं, ये बात अलग है कि तमिलनाडु में कहने के लिए 88 प्रतिशत हिन्दू है.

दिक्कत भारत के उत्तर में रह रहे लोगों को है. उन लोगों को समझना होगा कि आप भारत के दक्षिण में रह रहे लोगों के टुकड़ों पर पलते हैं. क्योंकि सेट्रल टैक्स में भारत के दक्षिणी राज्यों की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से भी अधिक है, लेकिन केंद्र इन राज्यों को करीब 28 प्रतिशत ही वापस देती है. उत्तर में बिहार तो सेन्ट्रल टैक्स में 2 प्रतिशत भी योगदान नहीं देता लेकिन केंद्र बिहार में 10 प्रतिशत खर्च करती है. उत्तर प्रदेश के लिए यह आकड़ा क्रमशः 6 और 18 प्रतिशत है.

संघीय ढांचा होने के कारण जिस प्रकार एक राज्य दूसरे राज्य के खर्च को उठाने के लिए अभिशप्त है ठीक उसी प्रकार धर्मनिरपेक्षता को क्षद्मरूप में अपनाने के कारण एक संप्रदाय के लोग दूसरे संप्रदाय का खर्च उठाने के लिए वरदानित हैं.

ऐसा नहीं है कि हिन्दुओं को यह वरदान बिना मांगे मिला है. भले ही बोलकर ना मांगा हो, लेकिन मंदिर जाते वक्त जब प्रसाद-माला-अगरबत्ती खरीदे बिना आपका भगवान खुश ही नहीं होता. मंदिर के दान में पेटी में भी आपको पैसा देना है और मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को भी. और आप ख़ुशी-ख़ुशी ऐसा करते हैं, तो सरकार को क्या जरुरत पड़ी उन भिखारियों के देखभाल की. ऊपर से मंदिर में जब दान देना पाप को धोने जैसा है!! इस कारण बहुत सारा 'पाप' दान-पेटियों में भर जाता है, बहने लगता है, बाढ़ आ जाती है. इसलिए विभिन्न सरकारें मंदिरों पर टैक्स लगाती है.


यह टैक्स कहीं 18 प्रतिशत है तो कहीं 10 प्रतिशत. पर मस्जि.द और च.र्च से ऐसा टैक्स नहीं लिया जाता लेकिन पैसे तो वहां भी आते हैं. जैसे अभी रमजा.न चल रहा है तो मुस्लिम 'जका.त' देगें जो सीधे मस्जिद जायेगा, फिर मस्जि.द उन पैसों को जहां भी लगाये, जमीन खरीद ले या किसी आतंकवादी समूह को फंड कर दें. फिर मदर.सों को चलाने के लिए भी सरकार पैसा देती है. वहीं चर्च उन पैसों से जमीन खरीदती है और फिर उस पर गरीब लोगों को बसाती है, चर्च को विदेशों से भी पैसा आता है. इस सब से चर्च सैंट पॉल और सैंट माइकल जैसे स्कुल खोलती है. जिन गरीबों को चर्च जमीन देती है या अपने पैसे से दवा-दारु देती है. इस सब के बाद कोई गरीब क्यूं ना क्रिस्च.न अपनाये.

इसके बाद वह गरीब च.र्च के किसी भी बात का विरोध नहीं करता, फिर कोई पाद.री किसी का बलात्कार ही क्यूं ना कर दे. गरीब छोड़िये यदि किसी अमीर को भी च.र्च अस्थायी रूप से जमीन दे दे तो वह क्यूं पा.दरी के खिलाफ़ बोलेगा? बोलेगा तो चर्च वापस उस जमीन को ले लेगा.

इस सबके बाद भी मुसल.मान और इ.साई, खुद के पैसे से कब्रिस्तान के लिए जमीन नहीं ख़रीदते बल्कि सरकार ही जमीन मुहैया करवाती है. एक बार जब वह पूरी जमीन मुर्दों से भर जाए तो फिर सरकार उन्हें दोबारा जमीन देती है. उसी जमीन के कुछ हिस्सों को मुस्ल.मान क्रिकेट का मैदान भी बना लेते हैं, तभी तो कोई इरफ़ान पठान निकल पाता है. और हिन्दु के बच्चे घर में लूडो और पब्जी खेल कर खुश होते रहते हैं.

और यही तो अंतिम लक्ष्य है, ख़ुश रहना, बस ख़ुश रहा जाय. जब तक कि आपके घर के बगल में कब्रिस्तान की सीमा ना पहुंच जाय, यूं ही ख़ुश रहा जाय.

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