कोरोना के 21 दिन बाद
आज आठवां दिन है. सब कुछ ठीक चलता रहा तो 21वां दिन भी आ जाएगा. फिर 22वें दिन क्या करेगा भारत? कभी सोचा है? हो सकता है कुछ लोग तिरंगा लेकर सड़क पर निकलें, या एक बार फिर थाली बजा कर कोरोना के खिलाफ जीत का जश्न मनाएं. कुछ आप जैसे अमीर भी होंगें जो शराब आर्डर करेगें, बहुत दिनों से हड्डी भी तो नहीं चबाया है, है ना? कोई सिनेमा देखने जायेगा. कुछ वो भी होंगें जो कहीं बीच में ही फंसे होंगें तो गंत्व्य तक पहुंचने के लिए आगे बढ़ेगें. ऐसे में गाड़ियों में असामन्य भीड़ देखने को मिल सकता है. कुछ लोग ओवर टाइम करने के लिए कमर कसेंगे तो कुछ घर के लिए जरुरी सामान खरीदने के लिए बाजार में एक बार फिर लांच होंगें.
ऐसे में क्या छुटेगा? क्या सब कुछ एक बार फिर सामान्य हो जायेगा? संभव है तब तक इस बीमारी के दवा का निर्माण हो जाए पर यदि नहीं हुआ तो? क्या एक बार सारे केस ख़त्म हो जाने के बाद दोबारा कोई संक्रमित नहीं होगा? क्या लोग एक बार फिर पहले की तरह लापरवाह हो जायेंगें? वो बार-बार हाथ को साबुन से अच्छी तरह साफ़ करना और मास्क लगा कर ही बाहर निकलना, क्या ये सब जारी रह पायेगा?
यदि नहीं तो फिर मुश्किल होने वाली है. पिछले अनुभव को याद कीजिये जब 2009 में N1H1 वायरस ने यही रूप अख्तियार किया था. इस वायरस के कारण भी डेढ़ लाख लोगों की मौत हुयी थी. एक बार तो मनुष्य ने इस पर पार पा लिया और इसकी दवा भी बन गयी लेकिन रह-रह कर यह वायरस अपना फन उठाता रहता है. उदहारण के लिए 2015 में 1900 लोग और 2020 में 1400 भारतीय इसके चपेट में आकर जान गवा बैठे.
इसलिए कुछ वैसी आदतें जिसे लेकर हम अक्सर लापरवाह होते हैं, उन आदतों को हमेशा के लिए अपनाना होगा. इन आदतों में सिर्फ मास्क लगाना और साफ़-सफाई ही रखना नहीं है. बल्कि बढ़ती हुयी जनसंख्या पर बात करने को लेकर भी हम लापरवाह हैं क्योंकि अक्सर इन मुद्दों पर बात करते हुए हमारी राजनीतिक पसंद सामने आ जाती है. इसी तरह आरक्षण के बारे में बात करते हुए हम अपनी जाति को आगे रखते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोगों की धर्मान्धता को हम धूर्तता से स्वीकार करते हैं.
आज डॉक्टरों के पास मास्क और इलाज के औजारों की कमी है. क्या एक बार संकट उबर जाने के बाद हम यह सब भूल जायेगें? यदि हां तो फिर कोई कोरोना किसी दूसरे नाम के साथ आता रहेगा.
ऐसे में क्या छुटेगा? क्या सब कुछ एक बार फिर सामान्य हो जायेगा? संभव है तब तक इस बीमारी के दवा का निर्माण हो जाए पर यदि नहीं हुआ तो? क्या एक बार सारे केस ख़त्म हो जाने के बाद दोबारा कोई संक्रमित नहीं होगा? क्या लोग एक बार फिर पहले की तरह लापरवाह हो जायेंगें? वो बार-बार हाथ को साबुन से अच्छी तरह साफ़ करना और मास्क लगा कर ही बाहर निकलना, क्या ये सब जारी रह पायेगा?
यदि नहीं तो फिर मुश्किल होने वाली है. पिछले अनुभव को याद कीजिये जब 2009 में N1H1 वायरस ने यही रूप अख्तियार किया था. इस वायरस के कारण भी डेढ़ लाख लोगों की मौत हुयी थी. एक बार तो मनुष्य ने इस पर पार पा लिया और इसकी दवा भी बन गयी लेकिन रह-रह कर यह वायरस अपना फन उठाता रहता है. उदहारण के लिए 2015 में 1900 लोग और 2020 में 1400 भारतीय इसके चपेट में आकर जान गवा बैठे.
इसलिए कुछ वैसी आदतें जिसे लेकर हम अक्सर लापरवाह होते हैं, उन आदतों को हमेशा के लिए अपनाना होगा. इन आदतों में सिर्फ मास्क लगाना और साफ़-सफाई ही रखना नहीं है. बल्कि बढ़ती हुयी जनसंख्या पर बात करने को लेकर भी हम लापरवाह हैं क्योंकि अक्सर इन मुद्दों पर बात करते हुए हमारी राजनीतिक पसंद सामने आ जाती है. इसी तरह आरक्षण के बारे में बात करते हुए हम अपनी जाति को आगे रखते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोगों की धर्मान्धता को हम धूर्तता से स्वीकार करते हैं.
आज डॉक्टरों के पास मास्क और इलाज के औजारों की कमी है. क्या एक बार संकट उबर जाने के बाद हम यह सब भूल जायेगें? यदि हां तो फिर कोई कोरोना किसी दूसरे नाम के साथ आता रहेगा.
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