बिना बोले मेरे जज्बात को गर तुम समझ जाओ ।

बिना बोले मेरे जज्बात को गर तुम समझ जाओ ।
अनल मेरे भी भीतर की.. अगर प्रशांत हो जाए ।।1।।
तक्कुल्फ़ वादियां तेरी.. अगर वीरान हो जाए ।
हिकारत गैर पर अपनी सितम सूली पे चढ़ जाए ।।2।।
(तक्कुल्फ़ - बनावट, हिकारत - उपेक्षा)
कसम कर उस ख़ुदाई का जिधर मकबूल हो अपनी ।
तेरी सांसे मेरी सांसों से दहक अंगार हो जाए ।।3।।
(खुदाई - भगवान, मकबूल - प्यार)
कहो आबाद होगे तुम.. अगर मैं बर्बाद हो जाऊं ।
कहोगे क्या परिंदों को ? अगर मैं फ़िर से लुट जाऊं ।।4।।
सदाएं देके अपनी तुम, मुझे एकसार करती हो ।
अगर इतनी ही जल्दी है तो क्यूं इंकार करती हो ??5??
(एकसार - समतल, मदहोश)
वो दरिया मिल समुंदर से अगर अल्फ़ाज हो जाए ।
ये हस्ती चीज क्या है गर तेरा दीदार हो जाए ।।6।।
नफ़ीस लम्हों को कुछ कर गुजरने की तमन्ना है ।
डरे इस बात से हैं कि तेरा खिलवाड़ हो जाए ।।7।।
(नफ़ीस - पवित्र)
समझता हूं वफाएं और मुरौवत आशिकी तेरी ।
कहीं तेरी समझ में ये ''रोहित'' दाग़ हो जाए ।।8।।
(मुरौवत - सज्जन)
तेरी नजरों में जाने क्यूं भारी शोख़ी झलकती है ।
मिला इक़ बार मुझसे तो कसम से जाम हो जाये ।।9।।
(शोखी - नटखट)
कहोगी कांड करते हो या कुछ काम भी करते हो ?
अगर ये काम हो जाए तो फ़िर आराम हो जाए ।।10।।

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