शिक्षा बने बिहार का मुद्दा

क्या आपके भी पड़ोस में कोई है जिसके घर के बच्चे पहले सरकारी स्कुल में पढ़ते थे, लेकिन जबसे आपके पड़ोसी को सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी लगी है उनका बच्चा कॉन्वेंट या मिशनरी स्कुल जाने लगा है.

ऐसे महान लोगों के वजह से ही देश चलता है. दिल्ली चुनाव के वक्त वहां के सरकारी स्कूल के काया-कल्प होने की बात सुनी होगी, इसके वाबजूद वहां के किसी भी विधायक मंत्री का बेटा-भतीजा-भतीजी सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ता.

अब आईये केंद्र के मंत्रियों पर. अव्वल तो 56 में से 12 मंत्रियों के बच्चे विदेशी कोलेज में पढ़ते हैं या पढाई कर चुके हैं.  इसमें कोई शक नहीं कि शायद ही किसी मंत्री-संत्री के बच्चे सरकारी स्कुल में पढ़ा हो.

पर शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक कुछ मायनों में अलग हैं. उनकी तीन बेटियां हैं और सभी भारत के शिक्षण संस्थान में ही पढ़ीं हैं जिसमें से मंझली बेटी आर्मी में कैप्टन है.

बिहार के बारे में भी लिखता पर अपना पूर्व उपमुख्यमंत्री और उनकी माता श्री राबड़ी देवी को याद करके रहने देता हूँ.

पोस्ट लिखने का उद्देश्य यह है कि आगामी विधानसभा चुनाव में दिल्ली हिंसा का मुद्दा बनने की संभावना है. फिर कुछ पार्टियाँ मुस्लमान-यादव-दलित भी करेंगें. और टीवी चैनल उसे हवा देगा पर आप का क्या मुद्दा होगा?

यदि आपका चुनावी मुद्दा राजनीतिक पार्टियों से अलग है तो चुप मत बैठिये क्योंकि भूमिहार-चमार करने वाले रोज बोल रहे हैं. शिक्षा को बिहार चुनाव का मुद्दा बनाइये.

अब मुझे ही देखिये, ये सब लिखते वक्त मुझे बिहार के शिक्षा मंत्री का ही नाम नहीं पता है. इसलिए मुझे किसी से शिकायत नहीं है. ना उन विधायक, मंत्री या सासदों से ना ही उन शिक्षकों से. क्योंकि उन्हें हमने ही चुना है.

लेकिन चौपट शिक्षा व्यवस्था को आप हम कब तक सहेंगें? वो भी तब जब इसका सम्बन्ध बढ़ते हुए अपराध से हो.

धन्यवाद..!!

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