आखिर क्रिस्चन मिशिनरी नागरिकता संसोधन अधिनियम के विरोध में क्यूँ है?

आइये बात करते हैं कि क्रिस्चन मिशिनरी नागरिकता संसोधन अधिनियम(CAA) के विरोध में क्यूँ है? अव्वल तो यह समझना होगा कि पोलिटिकल हिन्दुओं को इस अधिनियम से क्यूँ दर्द हो रहा है? मेरे हिसाब से इसका कोई कारण नहीं है शिवाय इसके कि उन्हें मरते दम तक भाजपा का विरोध करना है. वरना कई भाजपा विरोधियों को भी इस कानून का समर्थन करते हुए आसानी से देखा जा सकता है.

पर क्रिस्चानों विशेषकर कर मिशनरी से जुड़े क्रिश्चन एकदम खुट्टा गार के बैठे हैं. पहला तो यही कारण है कि आजतक क्रिस्चन मिशनरी ने कभी भी किसी भी मुद्दे पर कोंग्रेस का विरोध नहीं किया. कोंग्रेस उनका फेवरेट इसलिए भी है क्योंकि इस पार्टी की स्थापना खुद एक क्रिस्चन ने की थी, इतना ही नहीं इन्हें लगता है कि यही वो पार्टी है जिसे अंग्रेजों ने भारत की सत्ता सौंपी थी. इस कर्ज को कोंग्रेस ने एक विशेष कानून लाकर उतारने का प्रयास किया जिसके अंतर्गत प्रत्येक विधानसभा सहित संसद में एंग्लो-इन्डियन समुदाय के लिए 2 सीटें रिजर्व  रखी गयी जिसके लिए क्रमशः राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा मनोयन किया जाता है, अभी हाल ही में मोदी सरकार ने वो प्रावधान भी हटा दिया.

क्रिशचन मिशनरी द्वारा इस खुट्टा-गार विरोध को समझने के लिए मिशनरी के कार्य-प्रणाली को भी समझना होगा. मिशनरी पूरी तरह एक निजी कंपनी की तरह चलती है जिसमें आतंरिक लोकतंत्र की कोई जगह नहीं है. हो सकता है इसमें कोई बुराई ना भी हो पर भारत के चर्च में कौन पादरी होगा यह वेटिकन का क्रिशचन हेड- क्वाटर निर्धारित करता है.

ऊपर से क्रिस्चन मिशनरी के लिए भारत कोई अलग देश की तरह नहीं है. जैसे टेलिकॉम कम्पनियाँ बिहार-झारखण्ड को एक ही जोन मानती है उसी तरह क्रिश्चन मिशनरी भारत-पाकिस्तान और नेपाल को एक जोन मानता है. और जोनल हेड होता है मुंबई में बैठा जिसे कार्डिनल कहा जाता है. ऐसे में यदि पाकिस्तान का क्रिस्चन वहां से निकल जाएगा तो धर्म का प्रचार कौन करेगा?


यह समझना होगा कि भारत में क्रिश्चन धर्म इतना फला-फुला, इसके बावजूद भी उन्हें भारत में रह रहे क्रिस्चनों से वो लगाव नहीं हुआ जितना उन्हें यहाँ की जमीन से हुआ. इतने वर्षों के इतिहास में क्रिस्चन मिशनरी को यह अंदाजा हो गया कि भारतीय चाहे अपना धर्म परिवर्तन कर लें लेकिन उनकी पूजा पद्धति को बदलना खासा मुश्किल है क्योंकि इतने वर्षों में एक तरफ जहाँ भारतीय अपना धर्म बदलते रहे वहीँ ईशा मसीह को भी बदल कर कृष्ण का रूप दे दिया गया.

इसलिए मिशनरी ने अपने -आप को भारत का जमीन हड़पने पर केंदित किया साथ ही गरीब और आदिवासीयों के बीच धर्म का प्रचार जारी रखा.

इस सब का नतीजा यह हुआ कि कई शहरों में सरकारी जमीन से कहीं अधिक भूमि मिशनरी के पास. दक्षिण भारत में आम तौर पर छोटे शहरों में क्रिश्चन मिशनरी ने काफी जमीन इकठ्ठा कर लिया है. मिशनरी बड़े ही चालाकी से पहले सरकारी जमीन हड्पता है फ़िर यदि किसी ने जमीन हड़पने का की शिकायत की तो मामला कोर्ट में जाता है जहाँ दूसरी पार्टी खुद सरकार होती है. दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों का क्रिस्चन प्रेम बताने की जरुरत नहीं है. इसके बाद सरकार जान-बूझ कर मुकदमा हारती है और जमीन क्रिश्चन मिशनरी के कब्जे में चला जाता है.


भारत के उत्तर-पूर्व हिस्से का भी कमोबेस यही रवैया है, और वहां तो खुद क्रिस्चन ही सरकार चलाते हैं.


इमरजेंसी के समय भी ऐसा एक उदाहरण नहीं मिलता जिसमें भारत के मिशनरियों ने इसका विरोध किया हो बल्कि क्मूनिस्ट सहित मश्नरी ने भी इंदिरा का साथ दिया और ये क्रिस्चन का प्रभाव था कि आपातकाल के बाद हुए चुनाव में भी दक्षिण भारत में इंदिरा का दबदबा बना रहा था.


अभी हाल ही में झारखण्ड में चुनाव में मिशनरी अपना प्रभाव दिखाया. मुख्यमंत्री रहते हुए रघुवर दास ने धर्म बदलने के खिलाफ कानून लाया और चुनाव में उन्हें मुंह की खानी पड़ी.


CAA से शुरू हुआ था झारखण्ड चुनाव तक आ गये हैं इसलिए मुद्दे पर लौटना भी जरुरी है.


जिस तरह भारत में सिख, बौद्ध, जैन आदि धर्मों का जन्म हुआ उसी तरह मुस्लिम, यहूदी और मुस्लिमों का जन्म जेरुसलम में हुआ. अब यदि बौद्ध या सिखों को किसी पश्चिम के देश जैसे अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में किसी प्रकार की दिक्कत होगी तो अमेरिका या आस्ट्रेलिया का हिन्दू किसके साथ खड़ा होगा?? जाहिर है ऐसी परिस्थिति में हिन्दू उस सिख या बौद्ध के साथ ही खड़े होंगें. बस उसी प्रकार क्रिस्चन मिशनरी भी मुस्लमान के साथ खड़े हैं.


धन्यवाद..!

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