सुस्ती का समग्र विश्लेषण

चारों तरफ़ अर्थव्यवस्था की सुस्ती को लेकर हो-हल्ला मचा है. सरकार भी रक्षात्मक मुद्रा में है और विकल्पों की तलाश कर रही है. वर्तमान वित्तीय वर्ष के पहली तिमाही के आकड़े उत्साहवर्धक तो नहीं कहे जा सकते. ऊपर से विश्व की दो बड़ी अर्थव्यवस्था एक दुसरे को नुकसान पहुँचाने से बाज नहीं आ रहे.

ट्रेड वॉर के वाबजूद चीन की अर्थव्यवस्था जहाँ लम्बी छलांग लगाये जा रही है वहीँ अमेरिका, भारत, यूरोपियन यूनियन आदि में सुस्ती छाई पड़ी है. पिछले वर्ष सकल घरेलू आय में फ़्रांस और थोड़े समय के लिए इंग्लैंड को पछाड़ने के बाद, इस वर्ष के शुरुआत में ही एक बार फिर भारत पिछड़ गया. हालाँकि फ़्रांस भी यूरोपियन यूनियन का ही अंग है, और 2019 के पहली तिमाही में फ़्रांस का विकास दर 0.3 % है. यूरोपियन यूनियन का ही अंग डेनमार्क है जिसका विकास दर 2 प्रतिशत से भी नीचे है और वहां की सरकार मांग(डिमांड) बढ़ाने के लिए नकारात्मक ब्याज पर ऋण दे रही है.


कुल मिला कर शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं में चीन और स्विट्ज़रलैंड को छोड़ कर हर कोई हलकान है. भारत के लिए इस सुस्ती का कारण 2016 में हुयी नोट्बंदी और 2017 में आई जीएसटी को बताना कितना सही है जब किसी भी अन्य देश के लिए यह नहीं कहा जा रहा. और फिर एक तिमाही के आकड़ों के आधार पर हाय तौबा मचाना भी उतनी ही मुर्खता है. क्योंकि इससे पहले इस तरह की सुस्ती 2008 में देखने को मिली थी, जब वार्षिक विकास दर 4 के भी निचे था वहीं खुदरा और थोक मंहगाई सरपट सीढियाँ चढ़ी जा रही थी.


भारत में पहली बार कोई महिला पूर्णकालिक वित्तमंत्री बनी हैं और शुरुआत में ही उन्होंने कुछ ऐसे कदम उठाये जिसके दूरगामी और सुखद परिणाम होंगें. जैसे कि सरकारी बैंकों का विलय, इससे पहले इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था. 2008 में लेहमन ब्रदर्स के दिवालिया होने के बाद वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम में भी महिलाओं को वित्तीय मामलों में आगे लाने का सुझाव दिया गया था. तब उसके बाद दुनियां के शीर्ष वित्तीय संस्थाओं में ऐसा देखा भी गया कि महिलाओं ने इनका नेतृत्व किया और मंदी के बाद के हालात को बखूबी संभाला. मंदी की संभावना अब भी दूर-दूर तक नहीं है और वैश्विक सुस्ती की भी स्थिति दो शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के सीधे सीधे टकराने के कारण बन रही है.


भारत के स्थिति का सही आंकलन करने के लिए 2019 की पहली तिमाही के विकास दर की तुलना पिछले वर्ष के अंतिम तिमाही से करनी चाहिए जो क्रमशः 5.0% और 5.8% है . सरकार का भी मानना है कि सबकुछ ठीक नहीं है. पर ये कहना कि कुछ भी ठीक नहीं है, सरासर गलत होगा.


मंहगाई 3.1 के समान्य दर से बढ़ रही है. एनपीए में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 1 लाख करोड़ की भारी कमी आई है, पिछले 10 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है.

महंगाई दर का सामान्य होना बताता है कि इस सुस्ती से निपटने के लिए सरकार आम लोगों को मुश्किल में नहीं डाल रही. वरना 2008 में सारा दारोमदार आम लोगों पर ही आ टिका था जब मंहगाई दर 10 तक पहुंह गई थी, 2009 में तो यह दर 15 था. 2011 को छोड़ कर बांकी वर्षों में यह 10 के ही करीब रहा. परिस्थिति 2014 के बाद ही बदली.

इस बार सरकारी योजनाओं को बल देने के लिए, विमल जलान समिति के सुझावानुसार, सरकार ने रिजर्व बैंक से फण्ड लिया. हालाँकि रिजर्व बैंक के दिए फण्ड का इस्तेमाल कहाँ होगा यह निश्चित नहीं है. वहीँ बैंकों को पुनः पूंजीकृत करने के लिए 55 हजार कड़ोर रूपए लगाये गये. साथ ही पिछले बजट में आये उन प्रावधानों को सुधार गया जिसके कारण निवेशकों ने मुंह मोड़ना शुरू कर दिया था. जैसे कि एंजेल टैक्स को बजट के पूर्व की स्थिति में लाना, कॉर्पोरेट सोसल रिस्पोंसिबिलिटी में किये गये अनियमितताओं को फिर से सिविल मामलों के अंतर्गत लाना. इसके अलावे जीएसटी रिफंड को और भी आसान बनाने का अस्वासन दिया गया.

ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मांग में कमी आना रोजगार और अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भले चिंताजनक हो, पर पर्यावरण के दृष्टि से यह अच्छा ही कि लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट को तरजीह दे रहे क्योंकि उनके पास ओला, उबर के रूप में अच्छा साधन उपलभ्द है. इस क्षेत्र में मांग के गिरने की वजह 2020 आने वाला बीएस6 इंजन भी है. क्योंकि फ़िलहाल बीएस4 इंजन की गाड़ियाँ बनायी और बेची जा रही. इसलिए ग्राहक सीधे बीएस6 इंजन की गाड़ियाँ ही खरीदना ही बेहतर समझते हैं. इसके अतिरिक्त जबकि कंपनियों को बीएस6 इंजन बनाने के लिए टेक्नोलॉजी को और भी उन्नत करने की आवश्यकता होगी, गाड़ी बनाने वाली कम्पनियां ऐसा कर भी रही है.

संभव ही कि बीएस6 इंजन आने के बाद ही इस सेक्टर का कुछ हो पाए.

इस तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट में उछाल आने पर आश्चर्यचकित होने की भी जरुरत नहीं है क्योंकि त्योहारों के मौसम में ऐसे भी खरीददारी बढ़ जाती है.

इसलिए सरकार को उड्डयन क्षेत्र में नयी संभावनाओं को तलाशना चाहिए. पाकिस्तान के एयरस्पेस बंद होने के बाद भारत को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. फिर पाकिस्तान अपनी मज़बूरी के कारण उसके एयरस्पेस को कभी खोलता है तो कभी बंद करता है.

मंदी सरीखे परिस्थिति भारत जैसे देश के लिए बने ही नहीं हैं. ऊपर-ऊपर भारत की अर्तव्यवस्था कितना भी पूंजीवादी या फिर समाजवादी क्यूँ ना हो जाए यहाँ का समाज फ़ौरी तौर पर रुढ़िवादी ही रहता है, जो जरुरत पड़ने पर भूखा सोने जागने के लिए भी तत्पर रहता है.

पर अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती पंचमकारी गिरोह विशेषकर च्युतियम सल्फ़ेट का ध्यान कश्मीर और बांकी फेक न्यूज फ़ैलाने से हटाएगा. इसलिए जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है और जो होगा वो भी.

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