महुआ के भाषण का सम्पूर्ण 'फैक्ट चेक'

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यदि आपने फेसबुक पोस्ट पढ़ लिया तो सिर्फ अंतिम पैराग्राफ ही पढ़ें बांकी सब वही है



बीते कुछ वर्षों में राष्ट्रवादियों ने छद्म-सेकुलरवादियों को नाको-दम कर रखा है. स्थिति ऐसी है कि चेहरे तो बदलते हैं पर स्क्रिप्ट वही रहता है. रवीश कुमार, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, ममता बनर्जी, कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल, तेजस्वी यादव, प्रकाश राज..... इसके अलावे भी बहुत हैं, ये सफ़र अब महुआ मोइत्रा तक आ पहुंचा है. पिछले दिनों महुआ के भाषण को खूब उछाला गया जबकि उस भाषण में कुछ ऐसा नहीं था जिसे लोकसभा चुनाव से पूर्व भेड़ों की जमात ने बार-बार ना दोहराया हो. अच्छी बात यह है कि इस बार महुआ सहित तमाम झुण्ड की चोरी पकड़ी गयी कि किस प्रकार ये विदेशी फटेहाल कांसेप्ट को भारत पर फिट करना चाहते हैं.

महुआ का भाषण उनके दिल की आवाज़ नहीं बल्कि 'दिल पर तिल' है जिसे कई लोगों ने पकड़ लिया और राष्ट्रवादी पत्रकार सुधीर चौधरी तो ऐसा मौका ढूंढते ही रहते हैं कि कब इन 'बोझों' को आइना दिखया जाय. पर इस बार सुधीर चौधरी ही पकड़े गये. जी न्यूज के शोध में वो गहराई नहीं थी कि महुआ को इतनी आसानी से घेरा जा सके. पर जी न्यूज ने जो दिखया वो शतप्रतिशत सच लग ही रहा था कि पता चला कि जिसका भाषण महुआ ने चुराया वो तो महुआ के साथ खड़ा है और राष्ट्रवादी तो उसे फूटी कौड़ी नहीं सुहाते.

क्या है पूरा सच 


महुआ ने अपने भाषण  के एक हिस्से में कहा में कहा कि यूनाइटेड स्टेट के होलोकॉस्ट म्यूजियम के मुख्य गलियारे में रखे एक पोस्टर पर फांसीवाद के शुरुआती लक्षण को दर्शाया गया है. महुआ का झूठ यहीं पकड़ में आ जाता है. क्योंकि वह पोस्टर वहां है ही नहीं जहाँ महुआ ने कहा. महुआ से पहले ऐसी ही गलती मार्टिन लोंग्मैन ने की थी. मार्टिन लोंग्मैन वही हैं जिनके लेख से महुआ ने अपना भाषण छापा है. मार्टिन ने अपने लिखे लेख में कहा था कि यूनाइटेड स्टेट होलोकास्ट म्यूजियम में रखे पोस्टर में फांसीवाद के शुरूआती लक्षणों की लिस्टिंग की गयी थी.

अपने लेख के शुरुआत में ही मार्टिन ने उस पोस्टर का हवाला दिया जो कि मार्टिन के अनुसार उस म्जियूजियम में टंगा था. सुधीर चौधरी ने उस लेख को लिया और महुआ को.. पर वो यह भूल गये कि मार्टिन लोंग्मैन खुद अमेरिका के सिद्धार्थ वरदराजन हैं. और भी आसान हो इसके लिए समझिये कि जो काम रवीश कुमार, विनोद दुआ, बरखा दत्त भारत में करते हैं वही काम मार्टिन अमेरिका में. इसलिए महुआ पर चोरी का इल्जाम लगते ही मार्टिन तुरंत राइट विंग को गरियाते हुए महुआ के समर्थन में खड़े हो गये.

अब सच यह है कि वह पोस्टर जिसके बारे में महुआ ने दावा किया कि 2017 में उसे म्यूजियम के मुख्य गलियारे में रखा गया था और मार्टिन ने अपने लेख में भी लिखा कि वह पोस्टर म्यूजियम में टंगी थी ये दोनों झूठ है. पर चुकि मार्टिन ने पहले झूठ लिखा फ़िर महुआ ने उसी झूठ को दोहराया, इसलिए इस बात में संदेह नहीं है कि महुआ ने मार्टिन के लिखे को ही आवाज दी.

मार्टिन ने अपने लिखे आज(05/07/2019) के लेख में भी इस बात की स्वीकारोक्ति दी कि महुआ ने वही गलती की जो मार्टिन ने किया था.

ये उसी तरह है कि क्लास में एक तेज छात्र का कॉपी से चोरी उसके साथी भी करते हैं और उस तेज छात्र ने गलत बनाया होता है तो उसके सभी साथी भी वही गलती करते हैं और सबकी चोरी पकड़ी जाती है. महुआ के साथ भी वही हुआ है.

कथित पोस्टर को कभी प्रदर्शन के लिए मुख्य गलियारे में रखा ही नहीं गया बल्कि उस पोस्टर का एक फ्रेम किया हुआ फोटो 2017 में म्यूजियम के गिफ्ट की दुकान में बिक्री के लिए रखी हुयी थी. अभी मतलब 2019 में वो फ्रेम किया गया फ़ोटो गिफ्ट के दुकान में भी है या नहीं इसकी जानकारी तो मुझे नहीं है पर ऐसा कोई पोस्टर कभी म्यूजियम में प्रदर्शन के लिए नहीं लगाया गया.


शायद मार्टिन लोंग्मैन को सपना आया कि पोस्टर म्यूजियम में टंगी थी, इसलिए 2017 में एक लेख लिख कर उसे हकीकत में बदलना चाहा और महुआ मोइत्रा ने मार्टिन के सपने को अपने दिल में बसा लिया जैसा कि महुआ ने कहा भी कि भाषण उनके दिल की ही आवाज थी.

दरअसल फंसिवाद के शुरुआती लक्षणों को, जिसे महुआ और मार्टिन ने दोहराया, उसकी लिस्टिंग लोरेन्स बिट ने 2003 में की थी जब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प नहीं बल्कि जार्ज बुश थे. पर बिट का इशारा बुश की तरफ भी नहीं था बल्कि उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं को रेखांकित किया था.

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