चुनावी सफ़र पूरा करेगा निःशुल्क यात्रा


दिल्ली और केजरीवाल एक बार फिर से सुर्ख़ियों में आ गये. इस बार उनके साथ बसें, मेट्रो और महिलाओं की भी चर्चा की जा रही है. लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आधी आबादी को केन्द्रित कर केजरीवाल बसों और मेट्रो में मुफ्त सफ़र की घोषणा कर डाली. केजरीवाल जी का यह पैंतरा कितना काम आएगा यह तो वक्त बताएगा, पर इस फैसले के अपने लाभ-हानि और चुनौतियाँ हैं, जिनका परिक्षण करना आवश्यक है.


अव्वल तो दिल्ली में बसों की संख्या यात्रियों की संख्या के लिहाज से कम है, ऐसे में प्रयाप्त संख्या में बसों को सेवा में लाये बिना इस योजना को कार्यरूप देना भारी अनियमितता को न्योता देने जैसा है, जिसके फायदे कम नुकसान अधिक हैं. अभी दिल्ली में लगभग 6500 बसें हैं, यात्रियों की संख्या से तुलना करें तो प्रति 1000 यात्रियों पर आधी बसें ही आ पाती है, इसलिए औसतन एक रूट की बस के लिए 70 मिनट का इंतजार करना पड़ता है. जाहिर है कि अतिरिक्त बसों के बिना महिलाओं के लिए यात्रा फ्री करना खासा मुश्किल है. और फिर अतिरिक्त बसों के लिए पार्किंग और स्टैंड की व्यवस्था भी करनी होगी. इन सब मुश्किलों का जवाब मेट्रो में खोजा रहा है. पर मेट्रो की सीमाएं भी सीमित हैं और इसके साथ तकनीकी दिक्कत भी है. दरअसल मेट्रो स्टेशन के प्रवेश द्वार और निकास द्वार पर टोकन या मेट्रो कार्ड का प्रयोग किया जाता है, पर इन द्वारों पर लगा संयंत्र लिंग परिक्षण नहीं कर सकता. ऐसे में एक ही विकल्प शेष रह जाता है कि मेट्रो पास को आधार कार्ड से लिंक कर, प्रवेश और निकासी के समय उँगलियों के निसान का भी पुष्टि कर महिलाओं को छूट दी जाय. पर आधार कार्ड को निजता के उल्लंघन के नाम पर लगातार मिल रहे चुनौतियों के कारण यह विकल्प निरस्त हो जाता है.


पर उससे भी पहले मेट्रो में दिए जा रहे छूट के कारण हो रहे राजस्व घाटे की भरपाई को लेकर भी केंद्र और राज्य में खींचतान की संभवना बनती है. क्योंकि एक ओर जहाँ दिल्ली के बस सेवा का पूर्ण स्वामित्व राज्य सरकार के पास है तो मेट्रो में केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 50-50 फीसदी है. इसलिए बेहतर तो यह होता कि दिल्ली सरकार बस सेवा को ही और भी सुदृढ़ बनाती. इससे लोगों में सार्वजनिक वाहनों की तरफ़ झुकाव तो बढ़ता ही, इसके साथ ही बसों में महिलाओं की सघनता भी बढती और छेड़खानी की घटनाएँ कम होती. क्योंकि मेट्रो में तो महिलाओं के लिए अलग डब्बे अरक्षित होते हैं पर बसों के मामले में ऐसा नहीं है.


दिल्ली सरकार की यह योजना लिंगभेद को भी खुली चुनौती देता है. पश्चिम के देशों में निःशुल्क सार्वजनिक वाहन की योजना महिला-पुरुष मामले से परे थे, पर दिल्ली के मामले में ऐसा न होकर गरीब पुरुषों के ऊपर भी अमीर महिलाओं को वरीयता दी जा रही है. चुकि दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है और ठण्ड के मौसम में तो वहां सांस लेना भी दूभर हो जाता है, ऐसे में ऐसी किसी भी योजना को जल्द से जल्द लागु करने के साथ महिलाओं और पुरुषों के लिए सामान्य रूप से लागू करने की आवश्कता है, जिससे प्रदुषण पर आंशिक रूप से ही सही पर काबू पाया जा सके.

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