चालाक धोनी ने फिर चालाकी कर दी
बलिदान
बैच को अपने दस्ताने पर लगाना,
वो
भी बिना आईसीसी के अनुमति के,
फ़िर
विवादों में छा जाना और फ़िर
राष्ट्रवादी होने का प्रमाणपत्र
मिल जाना,
सब
बड़े ही कम समय में हो गया.
अब
यदि धोनी को बिना बलिदान बैच
के खेलना हुआ तो निश्चित रूप
से यह भारतीय सेना का अपमान
माना जायेगा,
और
स्वाभाविक रूप से दोष बीसीसीआई
पर मढ़ा जायेगा,
जबकि
गलती महेंद्रसिंह धोनी ने की
है जिसमें बीसीसीआई बस सहयोगी
मात्र है.
इस
तरह का कोई पैंतरा अपनाना
धोनी की मज़बूरी भी बन चुकी थी,
क्योंकि
पिछले दिनों एक आईपीएल मैच
के दौरान जब वो मैदानी अम्पायर
से बहस करने चले आये थे.
तो
लंबे वक्त तक धोनी के साथ
अन्तराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने
वाले वीरेन्द्र सहवाग के
आश्चर्य का ठिकाना नहीं था.
सहवाग
का आश्चर्यचकित हो जाना भी
स्वाभाविक था,
क्योंकि
'कैप्टन
कूल'
के
नाम से मशहूर धोनी को कभी भारत
के लिए खेलते हुए इस तरह आग
बबूला होते हुए नहीं देखा गया.
आने
वाले वक्त में हो सकता है कि
धोनी वो कसर भी पूरा कर दें,
पर
ध्यान देने वाली बात यह है कि
आईपीएल की तुलना में कहीं अधिक
समय धोनी ने भारत के लिए खेलते
हुए दिया है,
दरअसल
इसकी कोई तुलना ही नहीं की
जानी चाहिए पर धोनी ने अपना
आपा सिर्फ़ चेन्नई के लिए खेलते
हुए खोया.
ऐसे
में धोनी के फैन तो नहीं पर
सहवाग जैसे लोगों के लिए यह
बात गौर करने लायक हो जाती है,
इसलिए
धोनी ने बड़ी सोची-समझी
रणनीति के तहत वक्त रहते अपने
राष्ट्रवादी होने का सर्टिफिकेट
ले लिया.
ये
सभी बातें यदि सत्य है तो सारा
नाटक महेंद्रसिंह का पीआर
देखने वाली टीम के तरफ से किया
गया है जिस पर बीसीसीआई ने
वक्त रहते ध्यान नहीं दिया.

भला
पूरी टीम में सबसे अधिक देशभक्त
धोनी ही निकले और सभी इस दौर
में पीछे छूट गये.
ये
वही धोनी हैं,
जिन्हें
2014
में
जब राष्टपति पुरस्कार जिन्होंने
राष्ट्रपति पुरुस्कार समारोह
में जाने की जगह हनीमून पर
जाना बेहतर समझा था.
इसमें
कोई शक नहीं कि महेंद्रसिंह
धोनी निहायत ही चालाक व्यक्ति
हैं और उनकी चालाकी खेल के
मैदान में तो झलकती ही है,
पर
मैदान के बाहर भी वो कम नहीं
हैं.
सहवाग,
गंभीर
को उन्होंने अपने रास्ते से
तो हटाया पर रैना,
जडेजा,
मुरली
विजय,
शिखर
धवन को ख़राब खेल और फॉर्म के
वाबजूद लम्बे वक्त तक ढोते
रहे.
खैर
इस तथ्य के लिए कोई और व्याख्या
भी हो सकती है परन्तु इस बात
से इंकार नहीं किया जा सकता
कि उन्होंने क्रिकेट खेलते
हुए,
बिजनेस,
उद्योगपति,
बॉलीवुड
और राजनीतिज्ञों के मकरजाल
को ना सिर्फ़ समझा बल्कि उसका
उपयोग करते हुए सफ़लता की शिखर
पहुंचे.
धोनी
शुरूआती क्रिकेटरों में से
हैं जिन्होंने शराब के ब्रांड
का विज्ञापन करना शुरू किया
था.
और
उसके बाद यह चलन बढ़ता चला गया.
इसके
बाद धोनी लम्बे वक्त तक ना
सिर्फ़ भारतीय टीम और
चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान
रहे बल्कि इस दरमयान वो इण्डिया
सीमेंट के उप-निदेशक
भी बने रहे और इण्डिया सीमेंट
में उनकी हिस्सेदारी 10
फिसद
रही.
गौर
करने वाली बात यह है कि चेन्नई
सुपर किंग के मालिक,
आईसीसी
के चेयरमैन और इण्डिया सीमेंट
के मालिक उस वक्त एक ही शख्स
था,
एन
श्रीनावासन.
क्या
ये सब महज एक संयोग हो सकता
है?
अभी
जहाँ महेंद्रसिंह धोनी अपने
छवि को राष्ट्रवादी टच देने
को तुले हैं,
कुछ
ऐसा ही प्रयास उन्होंने अपने
ऊपर बनी फिल्म दी अनटोल्ड
स्टोरी के माध्यम से की थी.
जिसमें
काफी हद तक वो सफल भी रहे.
बहुत
सारे लोग सिर्फ उस फिल्म की
वजह से धोनी के फैन बने बैठे
हैं.
निःसंदेह
धोनी की कहानी प्रेरनादायी
है.
पर
यह तथ्य गले नहीं उतरता कि
एकदिवसिय क्रिकेट के पदार्पण
कने के बाद धोनी उस वक्त के
हार्दिक पंड्या थे इसके वाबजूद
किसी को कानों कान ख़बर नहीं
थी कि धोनी की कोई 'दिशा'
थी(फोटो-2)
और
उसकी मौत सड़क दुर्घटना में
हो गई जिसे बताने के लिए 'दी:
अनटोल्ड
स्टोरी'
जैसी
कमर्शियल फ़िल्म का निर्माण
करवाना पड़ा.
भला
अपनी मरी हुई गर्लफ्रेंड को
सच्ची श्रधांजलि देने का इससे
अच्छा जरिया क्या हो सकता है.

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