बेगुसराई : कमुनिस्ट का दुह्स्वप्न

तीसरी दुनियां के लोगों में संज्ञाओं का बड़ा महत्व है. शायद इसलिए कालिदास को भारत का सेक्सपियर कहा जाता है. फिर कौटिल्य को भारत का एडम स्मिथ भी कह देते हैं, पर कायदे से कालिदास और कौटिल्य, लोगों द्वारा दिए गए संज्ञा से काफी पहले, काफी कुछ कर चुके थे और सेस्क्पियर या स्मिथ का अवतरण उनके  शताब्दियों बाद हुआ. इसी कड़ी में अगला नाम है, बिहार के मास्को का. हमारे स्कुल में तो ऐसे कई आइन्स्टीन और न्यूटन भी हुए, उन्हें इस नाम से पुकारे जाने पर बड़ा गर्व होता था. इस तरह मैंने कभी किसी आर्यभट्ट को नहीं देखा. राजा हरिश्चंद्र तो हुए, पर चिढ़ाने क लिए, इसी तरह कुछ गाँधी भी.

बेगुसराय को मिनीमास्को कहना बौद्धिक दिवालियापन है 


1977 से 2008 तक बेगुसराय में दो लोकसभा क्षेत्र रहा. एक बेगुसराय और दूसरा बलिया. 2009 के परिशिमन में दोनों लोकसभा को एक कर दिया गया और पूरा जिला  एक लोकसभा क्षेत्र बन गया. जिन 30 वर्षों में बलिया, लोकसभाक्षेत्र के रूप में अस्तित्व में रहा, उसमें से लगभग 15 वर्षों तक कोम्मुनिस्ट पार्टी के सांसद रहे. इस बीच जो 6 लोग, यहाँ से लोकसभा पहुंचे, उनमें से तीन कोम्मुनिस्ट थे.

इसके उलट बेगुसराय, लोकसभा क्षेत्र के रूप में हमेशा से अस्तित्व में रहा. 11 लोग यहाँ से संसद पहुंचे, जिसमें से कम्युनिस्ट का एक . यहाँ कुल 16 चुनाव में कोमुनिस्ट सिर्फ 1967 का चुनाव जीत पाई थी.

पुरे जिले में 7 विधान सभा क्षेत्र हैं, जिसमें से कहीं भी कोई कोमुनिस्ट विधायक नहीं है. 1980 से 2005 तक सभी विधानसभा सीटों पर, कोमुनिस्टों का न सिर्फ दबदबा रहा, बल्कि समान्यतः चुनावों में कोम्मुनिस्ट पहले या दूसरे नंबर की पार्टी होती थी. 1990 और 1995 के विधासभा चुनावों में तो 7 में से छः सीटों पर क्म्मुनिस्ट के ही विधायक चुने गये थे. यही वो दौर था, जब बेगुसराय पर लिटिल मास्को और लेलिनग्राद की संज्ञा फिट बैठती थी.

इसे इस संज्ञा तक पहुँचाने में कद्दावर नेता चंद्रशेखर का काफी योगदान रहा. पुरे हिंदी प्रदेशों में चंद्रशेखर पहले कमुनिस्ट विधायक बने थे. चंद्रशेखर खुद भी विधायक पुत्र थे.

2015 विधानसभा चुनाव में बेगुसराय के किसी भी सीट पर कोम्मुनिस्ट मुख्य लड़ाई में नहीं थी. लोकसभा चुनावों में, वो या तो तीसरे नंबर पर रहती है, या उनके और जीतने वाले उम्मीदवार के बीच काफी फ़ासला होता है. ऐसे में आज इतिहास के उसी संज्ञा को जबरदस्ती उपयोग में लाना, संज्ञाओं का दुरूपयोग ही कहलायेगा. पर तीसरी दुनियां के लोगों को इसमें मजा आता है. वो सिर्फ मिनी मास्को तक ही नहीं रुकते, चुकि बेगुसराय, बिहार में सबसे अधिक गाय के दूध का उत्पादन करता है, इसलिए इसे डेनमार्क कह देते हैं.

बेहतर तो यह होगा कि बजाय मिनी मास्को, लेलिनग्राद कहने के, इसे बेगुसराय ही रहने दिया जाय. दिनकर की यह धरती, अपने आप में क्या कम है? औद्योगिक नगरी, गढ़पुरा का मंदिर, उत्तरायण गंगा, कावर झील, वहां का पक्षी विहार ये सब एक साथ और कहाँ मिलेगा?

यदि बस चले तो थर्ड वर्ल्ड के लोग बिहार में सबसे अधिक टैक्स उगाही के लिए, बेगुसराय को बिहार का बंगलुरु कह दें या उस से भी बढ़ कर ज्यूरिक या सेन फ्रांसिस्को . एक और, चुकि यह बिहार का सबसे अधिक शिक्षित जिला है ,तो क्यूँ न इसे केरल कहें? बिहार का केरल.  कल को कोई और जिला साक्षरता प्रतिशत में बढ़ जायेगा तो वो भी केरल ही  कहलायेगा.

गनीमत तो यह है कि एक ओर जहाँ ब्लाद्मिर लेलिन को कुछ विद्वान कई बार रूस का गाँधी कह देते हैं, वहीँ दूसरी ओर गाँधी के देश में कोई लेलिनग्राद बनाने को व्याकुल है.


तनवीर कन्हैया गिरिराज 

Image result for tanveer hasanतनवीर हसन, महागठबंधन(राजद) के टिकट पर बेगुसराय से लोकसभा चुनाव में प्रत्यासी हैं. राष्ट्रिय मिडिया में ये जितने गुमनाम हैं, जमीन पर उतने ही मजबूत. बिहार में नितीश के नेतृत्व में इन्होंने ही हर चौराहे पर शराब की दुकान खुलवाई थी. मुसलमान होने वाबजूद छद्म धर्मनिरपेक्षता से अलग, इनकी छवि एक आदर्श समाजसेवी की है. 2014 लोकसभा चुनाव में यदि कोम्मुनिस्ट वोटकटवा नहीं बनती तो भोला सिंह के जगह, शायद इन्हीं की जीत होती. इस बार तो इनकी संभावना और अधिक बन रही थी, पर कन्हैया जी आ गये और इनका गणित डावांडोल हो गया. फिर भी पूरी मजबूती से भिड़े हैं, माना जा रहा है कि राजद का कोर वोट बैंक के अलावा फ्लोटिंग वोट भी इनके हिस्से में आएगी. पर फ्लोटिंग वोट का क्या है, कहीं भी जा सकती है.


गिरिराज, बेगुसराय की  तरह इनका भी नाम ही काफी है. अभी केंद्र में मंत्री हैं, पहले बिहार में मतस्य एवं पशुपालन मंत्रालय  देख रहे थे. जी हाँ, बस देख ही रहे थे. बेगुसराय से लगाव काफी रहा है, पर हालिया विवाद ने विरोधियों को एक बहाना दिया. बड़े प्रक्टिकल और आक्रमक. खांटी स्वयंसेवक और मोदी समर्थक. आपको बता दूँ कि बीजेपी रहते हुए भी लोगों को मोदी नहीं सुहाते. उदहारण के लिए दिवंगत भोला सिंह जी.

चुकि इनकी पार्टी और खुद गिरिराज का व्यक्तित्व साउंड है तो टक्कर में ये भी हैं. कन्हैया के रूप में मजबूत वैचारिक प्रतिद्वंदी आने से इनकी स्थिति और भी मजबूत हुई है.

Image result for begusaraiऔर कन्हैया जी, इनके रूप में लोगों को एक मनोरंजन का साधन तो मिला ही, बेगुसराय को हॉट सीट बनने के सबसे बड़े कारण भी यही हैं.  राष्ट्रिय पटल पर तो देश के टॉप नेताओं में से हैं. न्यूज चैनल अपना एयरटाइम इन पर खर्च करने के लिए आतुर रहती हैं. बेगुसराय के बाहर, ऐसे लोग भी मिल जायेंगें जो इन्हें प्रधानमंत्री बना देखना चाहते हैं. एक बार जो इन से कोई मिल ले तो इन्हीं का होकर रह जाता है. बुद्धिजीवी हलकों में भी उतनी ही पकड़ है. पर सबसे कमजोर कड़ी है, इनकी खुद की पार्टी का जनाधार. जनाधार कम होने के बावजूद वो  समर्पित ऐसा कि इनके ऊपर लगे किसी भी आरोप को एक कान से सुन कर दुसरे से निकाल देता है. पर कन्हैया जितने मजबूत होंगें तनवीर उतने कमजोर.


तनवीर हसन का कमजोर प्रचारतंत्र 

सोसल मिडिया के इस दौर में तनवीर हसन और उनकी पार्टी, प्रचार के लिए उसी पुराने ढर्रे पर चल हैं. रैली, प्रचार गाड़ी के अलावा, वो 'काना-फूसी' का तरीका अपना रहे. वो बातें, जो वो खुल कर किसी स्टेज से नहीं कह सकते उसके लिए, उनके कार्यकर्त्ता कानों - कान प्रचार कर रहे. जैसे बालाकोट में किये गये हवाई हमले का सबूत वो स्टेज से नहीं मांग सकते. क्योकि ऐसे किसी भी बयान  का घाटा राजद और महागठबंधन को दुसरे स्थानों पर उठाना पड़ेगा, इसलिए अपने हिस्से के सच्चे-झूठे बातों को कहने के लिए वो आम कार्यकर्ताओं का प्रयोग करते हैं. इसमें एक झूठ यह भी कहा जाता है कि पुलवामा सैनिकों पर हमला मोदी की ही साजिस थी. बिहार के दुसरे सीटों पर भी इस तरह के तरकीबों का प्रयोग खूब हो रहा है.


इस तरह का प्रचार तो अनजाने में ही सही, पर हर पार्टी का हो ही जाता है, लेकिन राजद ने इसे रणनीति के रूप में अपनाया है.

Image result for begusarai NICE PICTUREबेगुसराय भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का विषय भी बन गया है, क्योंकि कन्हैया आरएसएस की भी खूब आलोचना करते हैं, इसलिए भाजपा अपने कार्यकर्ताओं और आरएसएस के काडर के अलावा विश्वविद्यालयों के छात्रों को बेगुसराय में उतार रही है. जिसके लिए अलग - अलग समय पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय से सौ-सौ छात्रों का दल प्रचार करती है. यह रणनीति भाजपा को सिर्फ कन्हैया जी की काउंटर करने के लिए अपनाना पर रहा है. भाजपा दूसरे सीटों के लिए भी कोलेजों में पढ़ रहे छात्रों  का इस्तेमाल कर रही है, पर बेगुसराय सहित कुछ चुनिन्दा सीटों पर उसकी खास नजर है. इसके अलवा भाजपा और गिरिराज का मजबूत आईटी सेल.


प्रचार करने में कन्हैया की कोई सानी नहीं है. संख्या के हिसाब से वो भाजपा से पीछे जरुर हैं, पर उनके पास भी वो सबकुछ है जो भाजपा के पास है. कैडर, विश्वविद्यालय से आई छात्र-छात्राओं की टीम और फिर सोसल मिडिया. इसके अलावा टीवी मिडिया और बोलीवुड कलाकारों की एक पंक्ति.  उनके पास बेहतर ऑप्टिक्स बनाने का हर साधन मौजूद है, पर जमीन पर वो गिरिराज के पिछलग्गू  ही हैं.


तो जीतेगा कौन  

जाति आधारित वोटों के बंटवारे के लिए सबकी  अपनी-अपनी व्याख्या है. इसी तरह मुस्लमान वोटों का भी. पर 14 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता प्रभावी निर्णायक बनने से दूर ही रहेगा क्योंकि टुकड़ों में ही सही, उनके वोट तो बटेगें ही. भूमिहार का एकमुश्त वोट गिरिराज को जाने की संभावना है, सिर्फ उनको छोड़ कर जो कोम्मुनिस्ट पार्टी से स्नेह रखते हैं. अन्य दूसरी जातियों  के मतदाताओं का बंदर बाँट ही होगा, क्योंकि पिछड़ी जातियों का स्वाभाविक आकर्षण राजद की ओर भले हो, पर नितीश और रामविलास पासवान, गिरिराज के लिए फायदेमंद ही होंगें. फिर नितीश कुमार और मोदी के विकास के रिकार्ड. कम ही सही, पर उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत और घर-घर शौचालय ऐसी योजनाएं हैं, जो एंटी इन्कम्बेंसी को कम करता है. यादवों का वोट तनवीर को एकमुश्त ट्रान्सफर होगी.

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तो कुल मिलाकर मुकाबला त्रिकोणीय ही है. कन्हैया को समाज के हर तबके से वोट मिलेगा. ऐसे में उनका जीतना स्वस्थ लोकतंत्र का अगला पड़ाव ही होगा. पर कन्हैया दूसरे स्थान के लिए  लड़ रहे हैं, क्योंकि उनकी  डफली उनका राग(विचारधारा) है, इसलिए उस राग पर अनचाहे रूप से विश्वास करने वाले भी वही हैं, जो सालों से ऐसा करते आ रहे हैं. वो लोग जिन्हें बेगुसराय अब भी मिनीमोस्को लगता है. तनवीर हसन के रूप में एक आदर्श प्रत्यासी होने के वाबजूद, गिरिराज का कद और उनका भूमिहार जाती से होना, तनवीर पर भारी पड़ रहा है.

नोट - 'कम्युनिस्ट' लिखने में जान बूझकर वर्तनी की असुद्धि की गयी है.


Comments

  1. बहुत अच्छा, काबिले तारीफ।
    Unbiased ओर सटीक ।
    गुड लेवल ऑफ कंटेंट एंड एनालिसिस।

    भाई हिन्दी मे फुल स्टॉप । । । । । । । ये होता है ये .....नही।

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  2. बहुत अच्छा, काबिले तारीफ।
    Unbiased ओर सटीक ।
    कन्हैया को तारीफ किये, जो वो deserve करता है। अच्छा लगा
    गुड लेवल ऑफ कंटेंट एंड एनालिसिस।


    भाई हिन्दी मे फुल स्टॉप । । । । । । । ये होता है ये .....नही।

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