Enhancing women empowerment: Beti Bachao to Sukanya Samridhi to Mudra

सबसे पहले युगांतकारी, बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के कारण, बेटियों को पहली बार समाज में वो स्थान मिला जिसके हक़दार वो सदियों से थे. कम्पैन आधारित इस योजना की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहली बार हरियाणा जैसे राज्य में प्रति 1 हजार लड़कों पर 900 से अधिक लड़कियां हुयी. देश के दुसरे राज्यों में भी इसका सकारात्मक प्रभाव देखने लायक है.
एक आलोचना 'बेटी बचाओ बेटी- पढाओ' की बार बार की जाती रही है कि इस योजना की अधिकतर स्वीकृत राशी को सरकार ने पुब्लिसिटी और प्रचार पर खर्च कर दिया. अलाचकों की यह आलोचना, उनकी नादानी है या फिर वो जानबूझ कर सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं. क्योंकि अभूतपूर्व सफलता पाने वाली बेटी 'बचाओ - बेटी पढाओ' एक कैम्पेन आधारित कार्यकर्म है इसलिए पैसे तो प्रचार पर ही खर्च किये जायेंगें ना.
सरकार यहीं नहीं रूकती, बलात्कार के विरुद्ध बहुप्रतीक्षित निर्भया कानून को संसद से मान्यता दिला कर सरकार ने बता दिया कि किसी उम्र के महिला विरोधी अपराध को बिलकुल भी क्षम्य नहीं माना जायेगा. यूँ तो तीन तलाक मुद्दे पर सरकार का स्टैंड हो या केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रक्षा और विदेश मंत्रालय की कमान महिलाओं के हाथ में देना, हमारे माननीय यशस्वी प्रधान मंत्री ने बता दिया कि वो कितने दूरदर्शी हैं.
बेटी बचाओ - बेटी पढाओ के छत्र-छाया में चलाया गया, सुकन्या समृधि, बेटियों की समृधि को सुनिश्चित करने करने की ओर सरकार का एक शसक्त कदम है. 10 वर्ष से कम आयु की लड़की के लिए न्यूनतम 1 हजार की राशी पर केंद्र सरकार 8 प्रतिशत से अधिक ब्याज देती है. इसका लाभ उठाने के लिए किसी भी नजदीकी डाकघर या बैंक शाखा जा कर न्यूनतम 100 रूपए जमा कर उठाया जा सकता है. योजना का लाभ खाता खुलने वाले तिथि से अगले 14 वर्ष तक लिया जा सकता है. भारत सरकार की यह दूरदर्शी योजना न सिर्फ लड़कियों के उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायक हो सकती है बल्कि जमा राशी और उस पर मिले ब्याज की मदद से व्यापार आदि भी शुरू किया जा सकता है. इस योजना के तहत खोले गये खाते में अधिकतम डेढ़ लाख तक की राशी जमा की जा सकती है, जिस पर किसी प्रकार का कोई टैक्स भी नहीं लगेगा.
महिलाओं के आर्थिक समृधि के मार्ग को प्रशस्त करने वाला ऐसा उदहारण खोजे नहीं मिलता. शेष काम मुद्रा और स्टैंड अप इण्डिया जैसी योजनायें कर देती है. वास्तव में बेटी बचाओ बेटी पढाओ और सुकन्या समृधि योजना के बाद मुद्रा और स्टैंड अप इण्डिया जैसी योजनायें सोने पर सुहागा साबित हो रही. स्टैंड उप योजना तो खास महिलाओं और अनुसूचित जाति तथा जन जाति को केन्द्रित है. इसका असर इपीएफओ की डाटा में भी परिलक्षित होता है, जिसके अनुसार पिछले वर्षे 1 कड़ोर से अधिक रोजगार पैदा हुए.
महिला शाश्क्तिकारण की दिशा में सरकार के तरफ से जिन तीन योजनाओ को सवार्धिक महत्वपूर्ण माना जाता है, उसका उल्लेख मैंने किया. ये योजनायें महिलाओं को न सिर्फ सामाजिक स्तर पर प्रतिष्ठा प्रदान करती है बल्कि आर्थिक रूप से भी समृद्ध बनाती है . इसके अलावा इस दिशा में प्रधानमंत्री की निजी दिलचस्पी काफी कुछ बयां करती है. कभी वो बैंकों से अपील करते हैं कि उनकी प्रत्येक शाखा कम-स-कम एक महिला को आर्थिक रोजगार स्थापित करने के प्रयास को सुनिश्चित करें. तो कभी देश का प्रधान पंचायत के प्रधान की माइक सम्भालता नजर आता है. और अपने कबिनेट में महत्वपूर्ण मंत्रालय का जिम्मा महिला को देकर उन्होंने राजनीति में भी बता दिया कि यदि इरादे बुलंद हो तो प्रतिनिधित्व के लिए सिर्फ आरक्षण ही एक मात्र रास्ता नहीं है . डायरेक्ट बेनिफिट ट्रासफर परिवार में महिलाओं के बैंक खाते को अनिवार्य करना सचमुच में काबिले तारीफ है.
मित्रों, देश एक सशक्त हाथ के जिम्मे है, जिसके कारण दशियों दिशा में दिन दोगुना रात चौगुना विकास सुनिश्चित किया जा रहा है. पर इस सबके अलावे हमें इस आत्ममंथन की सख्त जरुरत है कि इन मुद्दों पर एक सामाजिक प्राणी और उससे भी बढ़ कर, एक बुद्धिजीवी के रूप में हम कहाँ खडे हैं. क्या वाकई इस दिशा में हमारा कुछ योगदान है या फिर अब भी हम अंधाधुंध नारीवादी बनने के चक्कर में, फायदे से अधिक नुकसान को आमंत्रित कर रहे हैं. अभी हाल ही में हमारे यहाँ मी टू का आयात भरपूर मात्रा में किया गया. हर वो व्यक्ति जिस पर इस आन्दोलन के मद्देनजर आरोप लगा, वो आज भी मजे में जी रहे हैं. आप इस आन्दोलन का समर्थन कीजिये या विरोध पर प्रक्टिकल्ली देखा जाय तो दो साल पहले यदि किसी ने मुझे थप्पर मारा था, या मान लीजिये कि भरपेट मारा था, तो ये कितना उचित होगा कि आज से 4 वर्ष बाद मैं अमुक व्यक्ति के खिलाफ कोई आरोप लगाऊं या FIR दर्ज कराने थाने जाऊं. क्या आप लोगों को मुझ पर विश्वास होगा.
मिटू के तहत जिन महिलाओं ने आरोप लगाया, वो महानगर की हैं, सामाजिक रूप से अपेक्षाकृत स्वन्त्र भी हैं, खूब पढ़ी- लिखी भी हैं . पर उन्हें इतना ख्याल नहीं आया कि जिस समय ज्यादती उनके साथ हुयी उसी समय थाने जाया जाय. जबकि समाज उन महिलाओं को सशक्त तो मानता भी है, उनमें से बहुत सारी दूसरों के लिए प्रेरणा भी रहीं हैं. मैं मिटू के किसी स्पेसिफिक केस की बात नहीं कर रहा, क्योंकि हो सकता है कि उनमें से कुछ सही भी हो. पर समाज पर तो इसका नुकसान ही देखने को मिला, लोग लड़कियों को नौकरी देने से डर रहे हैं कि हो ना हो कल को उनका भी मिटू हो जाय.
मित्रों हर वो चीज जो विदेशी धरती पर सफल हुई हो, जरुरी नहीं भारत पर भी उसका सकारात्मक असर ही होगा .
अंत में मैं यही कहूँगा कि भारत रजिया सुल्ताना की धरती रही है, जिसने पारिवारिक और सामाजिक जद्दोजहद के वाबजूद राजपाट संभाला. इंग्लैंड के महारानी की तरह नहीं कि बीमारी के कारण राजा और फिर राजकुमार की भी मृत्यु हो जाय, इसके बाद माहारानी को गद्दी मिले. रजिया ने तो उसके भाई और सठयंत्रकारी को परस्त कर गद्दी पर कब्ज़ा जमाया था.
मित्रों, भारत मीरा की धरती रही है, भक्ति और प्रेम की निशानी.
मित्रों, भारत मणिकर्णिका अर्थात लक्ष्मीबाई की धरती रही है, संग्राम और स्वाभिमान का ऐसा उदहारण खोजे नहीं मिलता.
इसलिए, प्रेरणा और उदाहरण को, हमें कहीं से आयात करने की जरुरत नहीं है, बल्कि हमें खुद हमारी जड़ों को ही मजबूत करना होगा.
भाइयों एवं बहनों, देश को भले ही राजनीतिक आजादी मिल गयी हो पर सच्चे अर्थों में हम तभी आजाद हो पायेंगें जब हम गुलामी की मानसिकता से आजाद होगें. मीलों चले हैं फिर भी अभी मीलों चलना बांकी है .
दो पंक्ति के साथ आपको छोड़े जाता हूँ --
कि
देश की गर बेटियां
मायूस और नासाद है
दिल पे रख कर हाँथ कहिये
देश क्या आज़ाद है
दिल पे रख कर हाँथ कहिये देश क्या आज़ाद है.
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