एक्सिडेन्टल प्राइम मिनिस्टर (समीक्षा से आगे)

Related imageकहने की जरुरत नहीं कि फिल्म रियल पोलिटिकल ड्रामा है. बिना किसी पूर्वाग्रह के इसे देखना लगभग असम्भव है, पूर्वाग्रह तब और भी बढ़ जाता है जब किसी ने इसी नाम की पुस्तक पढ़ रखी हो. मैंने पुस्तक का पहला तीन अध्याय पढ़ रखा था, अक्चुअली गूगल बुक्स पर फ्री में इतना ही उपलब्द है. पर आपने पुस्तक  नहीं पढ़ा है, तो काफी नई जानकारियां मिलेगी.

(सिनेमाघर में),अनुपम की इंट्री(मनमोहन सिंह के रूप में)वाले दृश्य के अलावा  कभी ताली नहीं बजी. दर्शक गंभीर मुद्रा में ही रहे, हाँ बीच - बीच में सोनिया और राहुल गाँधी सहित दूसरे कोंग्रेसी नेता पर अभद्र टिपण्णी जरुर होती रही. शुरुआती दृश्य के बाद अनुपम फिल्म में कहीं नहीं मिले, बस मनमोहन ही मनम्हन. मतलब हर बार की तरह  खेर की एक्टिंग शानदार है पर इतनी भी नहीं कि ऑस्कर के दरवाजे पर दस्तक दे सके. हाँ, अनुपम इसके लिए राष्ट्रिय सहित कोई अन्य स्पोंसर्ड अवार्ड जीतते हैं तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा.

अक्षय खन्ना ने विभिन्न पात्रों के परिचय के अलावा कुछ - कुछ मिनटों में रियासती गलियारों के गूढ़ रहस्य को आसान भाषा में समझया है. बरु के रूप में उनकी भूमिका लम्बे समय तक याद की जाएगी.

सोनिया गाँधी और अहमद पटेल की भूमिका में क्रमशः सुजैन और विपिन शर्मा ने अपनी छाप छोड़ी है पर राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी की भूमिका में अर्जुन और आहना को ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं मिला है पर दोनों ने  एक्टिंग अच्छी की है .
Image result for VIPIN SHARMA ACCIDENTAL PRIME MINISTER
विपिन शर्मा 

औसत डायरेक्शन और संगीत के वावजूद उम्दा कलोकारों और बेहतरीन स्क्रिप्ट के दम पर फिल्म का इंटरवल और फिर समाप्ति कैसे हो जाती  है, पता भी नहीं चलता.

फिल्म में मनोरंजन के नाम पर सिर्फ राहुल गाँधी हैं. शीर्ष भारतीय राजनीति और मिडिया व्यवहार के आस-पास घुमती हुयी यह फिल्म लम्बे वक्त के लिए आक्रोश पैदा करने में सफल हुयी है. पहले हाफ में नुक्लियर डील के कारण  लेफ्ट पार्टियों का विरोध , बीजेपी के समर्थन तथा कोंग्रेस- सोनिया- मनमोहन के बीच हुयी जद्दोजहद पर विशेष प्रकाश डाला गया है .

फिल्म सच्चे अर्थों में मनमोहन सिंह को गुड टच देती है.

स्क्रिप्ट में तमाम बारीकियों के वाबजूद एक तथ्यात्मक  गलती हुयी है. एक दर्शक के रूप में उस गलती को पकड़ना आपके लिए चैलेंजिग होगा. पर पोलिटिकल ड्रामा के लिए इतना जायज भी है.

इसके अलवा मनमोहन को पूरी फिल्म में अधिकतर  हिंदी बोलते हुए दिखाया गया है जबकि सामान्यतः मनमोहन अंग्रेजी का उपयोग करते हैं.

ऐसा लगता है कि फिल्म कुछ और लम्बी हो सकती थी पर एक बार से अधिक देखने लायक भी नहीं है .

कुल मिलाकर 2019 के आम चुनाव से पहले, भारतीय लोकतंत्र के  हित में, इस फिल्म को अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुँचना चाहिये.

भारत में बनने वाली  यह अपने प्रकार की पहली फिल्म है, जो वास्तविक राजनीतिक स्क्रिप्ट, पात्रों, घटनाओं पर आधारित हो .

विभिन्न उम्दा अभिनेताओं के उम्दा अभिनय के वाबजूद, फिल्म अन्तराष्ट्रीय स्तर की नहीं बन पाई . यह तब और भी दुखदाई हो जाता है जब फिल्म निर्माताओं को, इसे मिलने वाली फ्री पब्लिसिटी का अंदाज़ा पहले से था.

1 घंटा 50 मिनट की यह फिल्म सभी घटनाओं को समेटने में भी नाकाम रही है. फिल्म के शीर्षक के लिहाज से यह भले ठीक हो पर दर्शकों को प्यासा ही छोड़ जाती  है .बेहतर होगा की भारतीय राजनीति पर बेहतर शोध पर आधारित वेब्सिरिज बने.









Comments