भला सरदार के इमारती ढकोसले की क्या जरुरत ?
2 9 8 9 कड़ोर रूपए , तीन हजार कड़ोर ही मान लीजिये राउंड फिगर में . इतनी बड़ी रकम , इतने में तो 2 नए IIT हो जाते , या फिर 5 नए IIM या फिर 6 मंगलयान मिशन का खर्चा निकल जाता . अर्थशास्त्र की भाषा में इसे Cost Benefit Analysis कहते हैं , मतलब लागत लाभ विश्लेषण . यह विश्लेषण यहीं समाप्त नहीं होता . चुकि 'स्टेचू ऑफ़ यूनिटी' को बहुतेरे मौकों पर 'स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी' से तुलना की जाती है , इसलिए उसके व्यापारिक पहलु , स्पष्ट रूप से कहूँ तो स्टेचू ऑफ़ यूनिटी को पर्यटन लाभ की कसौटी पर भी कसा जा रहा है . एक अनुमान के मुताबिक 'स्टेचू ऑफ़ यूनिटी' से होने वाले पर्यटन लाभ से , इसके लागत और रखरखाव में खर्च की गयी राशी को प्राप्त करने में 120 साल लग जायेंगें , वो भी तब जब ये ताजमहल की तरह लोकप्रिय हो . विश्लेषणों के साथ 'सरदार' के योगदान पर भी चर्चा स्वाभाविक है , संभव है कि कोई यह तर्क दे दे कि सरदार पटेल को तीन राज्य , जूनागढ़ , हैदराबाद और त्रावनकोर के लिए ही श्रेय दिया जा सकता है , बांकी रियासतें खुद-बखुद भारत के साथ आ खरी हुई थी . इसलिए इतने विशाल स्टेचू का निर्माण कर 'सरदार' के योगदान को बढ़ा - चढ़ा कर दिखाया जा रहा है . इतना ही नहीं इस मेड इन चाइना वाले मूर्ति के दम पर नरेंद्र मोदी 'सरदार' को हाइजैक करना चाहते हैं .
सबसे पहले Cost Benefit Analysis .
आपने कभी बुलेट ट्रेन की लागत पर गौर किया है . भारत की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना की लागत 1.1 लाख करोड़ है , जितने में 800 राजधानी एक्सप्रेस आ सकती थी .
एक दूसरा उदहारण लेते हैं , इस बार सिरियस वाला . चेक रिपब्लिक में हुए एक लागत लाभ विश्लेषण में कहा गया कि यदि सिगरेट बनाने वाली कंपनियों और सिगरेट पीने वालों को सरकार यूँ ही छोड़ दे तो चेक गणराज्य आर्थिक रूप से सशक्त हो जायेगा . इस विश्लेषण में सिगरेट कंपनियों से प्राप्त कर , बूढ़े हो रहे लोगों के ऊपर पेंशन , दवा और हाऊसिंग के खर्चे को जोड़ा गया . फिर इस खर्च को देश भर में कुल सिगरेट खरीदने वाले लोगों के सिगरेट पर हुए खर्चे से तुलना करने पर पाया गया कि चेक गणराज्य को 147 मिलियन डालर मतलब भारतीय मुद्रा के अनुसार 10,88,68,20,000 रूपए का फायदा हो सकता है .
सरल और स्पष्ट शब्दों में कहें तो सिगरेट पीने के कारण लोगों की मृत्यु असमय होती है . सामान्यतः तो ऐसे लोग अपनी आजीविका कमाने तक ही जिन्दा रह पाते हैं . ऐसे में उनकी पूरी जिन्दगी में सिगरेट पर हुआ खर्च , उनके बूढ़े होने के कारण दवा , घर आदि पर हुए खर्च से काफी कम होगा .यह बात किसी पर भी लागू होती है . विश्लेषण का लब्बोलुआब यह है कि सरकार सिगरेट कंपनियों पर किसी प्रकार की बंदिश लगाना छोड़ , लोगों को सिगरेट पीने के लिए प्रोत्साहित करे . लागत लाभ विश्लेषण के ऐसे दूसरे भी उदहारण है जैसे कि सड़क सुरक्षा पर हुआ खर्च और सड़क दुर्घटना में मारे गए तथा घायल लोगों को दिया जाने वाला मुआवजा और चिकित्सा पर हुए खर्च का विश्लेषण . इन विश्लेषणों को देख कर तो यही कहा जा सकता है कि सरकारें आम तौर पर जो सड़क सुरक्षा से बचने के लिए खर्च करती है वो गलत है , या बिना मतलब का है .
मैं इन COST BENEFIT ANALYSIS के और भी गहराई में नहीं जाऊंगा पर उन लोगों से मेरा कहना है कि जब सरकार बीते 4 सालों में 5 नए IIT , 13 नए AIIMS और 5 नए IIM को लेकर पहल कर चुकी है तो ये पप्पू लोग 'स्टेचू ऑफ़ यूनिटी' की ही कीमत पर इसे क्यूँ चाहते हैं . फिर इसरो ने इन 4 वर्षों के दरम्यान कब पैसे की कमी की बात कही .
मैं इस बात से सहमत हूँ कि शिक्षा , स्वास्थ्य , शोध आदि में और भी खर्च करने की जरुरत है पर क्या एक स्टेचू इन सबके के लिए बाधक होगी . वो भी तब जब इसके लागत के तीन - चौथाई से अधिक हिस्से का वहन सिर्फ एक राज्य सरकार कर रही है .
सरदार पटेल ने तो सिर्फ 3 रियासतों को ही भारत में मिलाया
आम तौर पर 'सरदार' को तीन रियासतों जूनागढ़ , हैदराबाद और त्रावणकोर को भारत में मिलाने के लिए जाना जाता था . वैसे तो ये भी कम नही है पर जान बूझ कर सरदार को इतने तक सिमित करना किसी कृतघ्नता से कम नहीं है . इन तीन राज्यों का तत्कालीन क्षेत्रफल वर्तमान भारत के क्षेत्रफल का लगभग 8 % है. इन तीन राज्यों के आलावा जम्मू - कश्मीर , जिसके मुस्लिम बहुल होने के कारण शुरुआत में तो सरदार ने बेरुखी दिखाई थी पर उनके ही तेज तर्रार रणनीति का नतीजा था कि वक्त रहते जम्मू कश्मीर में भरतीय सेना को भेजा गया . सैम मैनिक शॉ उस वक्त भारतीय सेना में फील्ड मार्शल थे उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में 'सरदार' की भूमिका को याद किया है . इंटरव्यू का एक स्क्रीनशॉट
इस सबके अलावा भारत को एक शूत्र में पिरोये रखने के लिए 'सरदार' ने अखिल भारतीय सेवाओं के माध्यम से यह सुनिश्चित का प्रयत्न किया कि अधिकारिओं को उनके होम काडर से अलग रखा जाये , जिससे कि एकता-अखंडता को चुनौती देने वाले अलगावाद और दूसरे समस्याओं से निपटा जा सके . इस तरह भारत का वर्तमान स्वरुप मोटे तौर पर सरदार पटेल के प्रयासों का नतीजा है . इस काम में मेनन सहित और दुसरे लोगों ने भी उनका साथ दिया शायद प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु और उन तमाम रियासतों के राजाओं ने भी जिन्होंने अपनी मर्जी से भारत का साथ चुना , पर इस पुरे प्रक्रिया में कूटनीति और प्रलोभन का खूब जोर चला था . विल्बुर पुरस्कार विजेता लेखक हिंडोल सेनगुप्ता ने अपनी पुस्तक 'द मैन हु सेव्ड इंडिया' में सरदार के योगदानों का विस्तृत विवरण दिया.
स्टेचू मेड इन चाइना है
आंशिक तौर पर यह सही भी हो तो भी अंध विरोध में जिम्मेदार नागरिक को ऐसा कहने से बचना चाहिए . ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में 'स्टेचू ऑफ़ यूनिटी' जैसे बड़े प्रोजेक्ट को भारत जैसा विकासशील देश अकेले पूरा कर ले , यह निःसंदेह अच्छा होगा . पर किसी वस्तु को जब आप खरीद लेते हो तो वह आपका हो जाता है , क्योकि उस वस्तु के लिए आपने विक्रेता को वस्तु का मूल्य अदा किया है .
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी का निर्माण भारतीय अन्तराष्ट्रीय कंपनी लोर्सें एंड टर्बो ने किया है .

जिसका डिजाईन पद्मभूषण राम वनजी सूत्र ने तैयार किया .कहने कि जरुरत नहीं कि सूत्र भारतीय हैं .
निर्माण का सुपरविजन अर्थात पर्यवेक्षण टर्नर कंस्ट्रक्शन , माइकल ग्रेव्स एंड एस्सोसिएट और मेंहर्द्त ग्रुप ने किया , ये तीनो कम्पनियाँ अमेरिका की है .
स्टेचू के ऊपरी परत पर कांसे की प्लेट और विभिन्न आकारों वाले पैनल का इस्तेमाल किया गया है , जिसका निर्माण चीन की एक कंपनी जियांगजी तोंग्जी मेटल हेंडीक्राफ्ट ने किया है . भारत के 15 बड़े कांस्य फौण्डरिज इस काम को करने में अक्षम थे , तो निर्माण कंपनी लोर्सों एंड टर्बो ने एक वैश्विक टेंडर निकालने के बाद जियांगजी तोंग्जी मेटल हेंडीक्राफ्ट को चुना .
इसके लिए चाइनीज कंपनी को 270 करोड़ रूपए दिए गए . यह पूरी लागत का 9 % है .
पर यह तथ्यों का एक पहलु है , यह बात सर्ववदित है कि इस स्टेचू के निर्माण के लिए भारत के गावों से 5000 टन लोहा जमा करवाया गया . बेहतर तो यह होता कि हर राज्य सरकार अपने पर्यटन कोष का कुछ हिस्सा स्टेचू निर्माण में देती , लेकिन प्रोजेक्ट की घोषणा के वक्त नरेंद्र मोदी राजनितिक रूप से छुआछुत के शिकार थे इसके बावजूद मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया और भारतीय किसानों से स्टेचू निर्माण में सहयोग का आह्वान किया .
नरेंद्र मोदी 'सरदार' को हाइजैक कर रहे
इस तर्क में वाकई दम है , पर इसका कारण भी तो वही हैं जो स्टेचू के निर्माण को लेकर मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं . महापुरुष किसी राजनितिक पार्टी के भले न होते हों पर भारत की राजनीति इसके उलट है , मोदी ने तो उस बनी बनाई परिपाटी को तोरने का काम किया . मोदी ने महापुरुषों को हाइजैक नहीं किया है बल्कि उन्हें अपने आप में समाहित किया है . फिर वो महात्मा गाँधी , सुभाष चन्द्रबोस , आंबेडकर ,वीर सावरकर , दिन दयाल उपाध्याय , अटल बिहारी वाजपेयी , विवेकानंद या लाल बहादुर शास्त्री हों .
बेहतर क्या होगा ?
बेहतर होता कि स्टेचू ऑफ़ यूनिटी 128 मीटर से भी ऊँचा होता . जैसे कि 562 , क्योंकि 562 रियासतें मिलने से ही हिन्दुस्तान का निर्माण हुआ था . फ़िलहाल स्टेचू ऑफ़ यूनिटी की ऊंचाई का सम्बन्ध गुजरात विधानसभा से है , जिसमें कुल 128 विधयक हैं . पर यदि इसकी लम्बाई फुट में देखी जाय तो एक दूसरा पहलु सामने आता है .
स्टेचू ऑफ़ यूनिटी कि लम्बाई 597 फुट है , जो अखंड भारत को प्रतिबिंबित करती है . आज़ादी से पहले भारत में कुल 584 रियासतें थी , पर यदि मौर्यकालीन भारतीय मानचित्र को रियासतों के हिसाब से देखे तो कुल रियासतें 597 होंगी .
इस तरह स्टेचू ऑफ़ यूनिटी एक मूर्ति , विशाल कला-कृति या पर्यटन से बढ़ कर है . यह एक विचार को आकर देने का जीता जागता उदहारण है , जिससे आने वाली पता नहीं कितनी पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक होगी जिससे कि वो आज़ादी , एकता अखंडता का मतलब बिना किसी सवाल किये जान सकें .
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